Radio Drama रेडियो ड्रामा
Radio drama is an important program of radio media. It entertain audiences and it is also used for information and education. The content discusses various aspects of radio drama.
1 रेडियो ड्रामा रेडियो माध्यम का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम है जो कि मनोरंजन के साथ-साथ ही शिक्षा देने के लिए भी प्रसारित किया जाता है। आज हम अपने इस लेक्चर में रेडियो ड्रामा के बारे में चर्चा करेंगे । इसके अंतर्गत रेडियो ड्रामा क्या है और इसके उपयोग महत्व के साथ-साथ रेडियो ड्रामा लेखन के बारे में भी जानकारी देंगें।
2 हम रेडियो ड्रामा को ऑडियो ड्रामा, ऑडियो प्ले, रेडियो प्ले, रेडियो थिएटर, ऑडियो थिएटर आदि नामों से भी पुकारते हैं। ये सभी एक ही प्रकार के कार्यक्रम के पर्यायवाची नाम कहे जा सकते हैं। इसमें पूरी तरीके से श्रव्य या सुनने योग्य ध्वनि में कार्यक्रम तैयार किया जाता है। इसे बगैर किसी प्रकार के दृश्य तत्व के नाटकीय रूप में कार्यक्रम का प्रसारण किया जाता है। इस दृष्टि से यह रेडियो के अन्य कार्यक्रम से काफी भिन्न है । Radio Talk Programme रेडियो वार्ता कार्यक्रम, Radio magazine
इसे सामान्यतौर पर रेडियो माध्यम पर सुना जाता है या फिर वर्तमान में ऑडियोबुक के रूप में भी यह उपलब्ध होती है। इंटरनेट सूचना तकनीक ने रेडियो नाटक को एक नया रूप और प्लेटफार्म उपलब्ध कराया है। इससे वह इस माध्यम पर भी विभिन्न तरीके से उपलब्ध होता है । रेडियो नाटक को कान का सिनेमा भी कहा जाता है । इसमें रेडियो नाटक के लिए जो कुछ भी बातें लिखी जाती हैं] वह दिखाने की वजह बगैर कान को सुनाने के संदर्भ में चित्रित की जाती है । इससे लोग उसे आसानी के साथ ग्रहण कर सकते है।
रेडियो नाटक का उद्देश्य Objectives of radio drama
3 अब प्रश्न यह है कि रेडियो नाटक का उद्देश्य क्या है । इसके अंन्तर्गत यही कहा जा सकता है कि लोगों को मनोरंजक एवं कलात्मक तरीके से किसी बात को बतलाना ही रेडियो नाटक का उद्देश्य है। यह एक तरफ लोगों का मनोरंजन करता है, वहीं दूसरी तरफ उनको सूचित और शिक्षित करने का भी कार्य करता है। इस कार्यक्रम के माध्यम से श्रोताओं को कुछ न कुछ संदेश भी देने का प्रयास किया जाता है।
4 नाटक के उद्देश्य के अन्तर्गत रेडियो स्क्रिप्ट राइटर का इंटेंशन या मंतव्य महत्वपूर्ण होता है। कई प्रश्नों को ध्यान में रख करके स्क्रिप्ट लिखा जाता है। यह ध्यान में रखना पड़ता है कि जो रेडियो स्क्रिप्ट लिखा जा रहा है, वह किसके लिए लिख रहा है और उसका मूल मंतव्य क्या है। क्या वह ऑडियंस को हंसाना चाह रहा है या कोई वर्तमान या ऐतिहासिक ऐसा विषय दिया गया है जिस पर कि वह अपनी तरफ से कोई कमेंट प्रस्तुत करना चाहता है। कई बार लेखक किसी विषय पर जानकारी देना चाहता है। लेखक का उद्देश्य किसी घटना को एक रोचक तरीके से बतलाना भी होता है। वह नाटक के माध्यम से कोई खास संदेश भी देना चाहता है। इस तरीके से रेडियो नाटक में जो लेखक होता है, वह एक या एक से अधिक उद्देश्य ले करके अपने इस स्क्रिप्ट की रचना करता है। फिर वही रेडियो नाटक के उद्देश्य भी माना जा सकता है।
रेडियो नाटक का प्रसारण में महत्व Importance of radio Drama in Broadcasting
5 अब एक प्रश्न यह है कि रेडियो नाटक का रेडियो प्रसारण में क्या महत्व है । इस संदर्भ में कई ऐसी बातें हैं जिसे कि इसके पक्ष में बताकर के रेडियो नाटक के महत्व को दर्शाया जा सकता है। इसमें सबसे मुख्य तो यही है कि यह साहित्य को रेडियो नाटक के माध्यम से बहुत बड़ी संख्या में श्रोताओं तक आसानी के साथ पहुंचाया जा सकता है । बहुत से श्रोता सामान्य तौर पर किसी प्रकार के साहित्य पठन से दूर रहते हैं । साहित्य तक वे विभिन्न कारणों से नहीं पहुंच पाते हैं। किन्तु वे इसके माध्यम से साहित्य की जानकारी एवं आनंद ले सकते हैं। यह एक प्रकार से उनका स्वास्थ्य मनोरंजन करता है। रेडियो के माध्यम से देश-विदेश के विभिन्न भाषाओं के विभिन्न काल के महान लेखकों की रचनाओं को श्रोताओं तक पहुंचाना आसान हो जाता है । इस प्रकार से रेडियो नाटक का कार्यक्रम महत्वपूर्ण कार्यक्रम रेडियो है।
6- रेडियो नाटक के विषय Subject of radio drama
रेडियो नाटक के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के विषयों पर नाटक का प्रसारण किया जाता है । एक तरफ इसमें विभिन्न भाषा साहित्य के लेखकों की रचनाओं का प्रसारण किया ही जाता है। वही, रेडियो माध्यम के लिए सर्वथा नए सिरे से नाट्य लेखन भी किया जाता है । इसके अंतर्गत ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक या अन्य संदर्भों को लेकर के नाटक लिखा जाता है। इसके माध्यम से प्रायः कई बार वास्तविक जीवन की घटनाक्रमों को भी नाटकीय रूप में प्रस्तुत किया जाता है । इसमें किसी प्रकार की समस्या को मनोरंजक एवं नाटकीय तरीके से दर्शा करके उसका वास्तविक आभास श्रोताओं को कराया जाता है । इस प्रकार से रेडियो नाटक लेखक द्वारा लिखे गए साहित्य का विस्तार है। यह जीवन के विविध पक्षों के बारे में बहुत ही रोचक तरीके से श्रोताओं को जानकारी उपलब्ध कराता है। कई बार रेडियो पर बहुत ही काल्पनिक विषय भी लिए जा सकते हैं। ये मानवीय जीवन से जुड़ कर के भी हो सकते हैं अथवा निहायत कल्पना जगत के विषय हो सकते हैं।
7- रेडियो नाटक प्रसारण अवधि Duration of Radio drama
रेडियो जैसे माध्यम पर सिर्फ ध्वनि रूप में लंबा कार्यक्रम प्रस्तुत करना चुनौतीपूर्ण कार्य है ।उसमें श्रोताओं को बांधे रखना एक मुश्किल कार्य है। इसलिए रेडियो नाटक काव्य प्रसारण बहुत लंबा अवधि तक नहीं किया जा सकता है । रेडियो नाटकों की अवधि प्रायः आधे घंटे से लेकर के 45 मिनट या कभी-कभी 1 घंटे तक की भी होती है । रेडियो माध्यम पर लघु नाटिका 15 मिनट की अवधि भी प्रसारित किए जाते हैं जो की पूरी तरीके से एक्शन से भरपूर होते हैं । यदि कोई उपन्यास या लंबी कहानी आदि रेडियो माध्यम पर प्रसारित करने की योजना बनती है तो उसें कई भागों में विभाजित करके रेडियो नाटक का निर्माण किया जाता है। उसे अलग-अलग दिनों पर उसको श्रृंखलाबद्ध तरीके से प्रसारित किया जाता है।
8- रेडियो नाटक के विविध तत्व Different elements in radio drama
8 किसी भी रेडियो नाटक के विभिन्न तत्व होते हैं । अलग अलग पुस्तकों में इसका अलग अलग संख्या में वर्णन किया गया है। इन सभी तत्वों को मिला करके ही रेडियो नाटक का निर्माण होता है। सामान्य तौर पर किसी भी रेडियो नाटक के अंतर्गत कई तत्वों को मिला करके उसकी स्क्रिप्ट तैयार की जाती है। इसमें कैरेक्टर, थीम, प्लॉट, डायलॉग, डायरेक्शन, म्यूजिक, ध्वनि प्रभाव एवं विराम मुख्य रूप से वर्णित किए जाते हैं। इसमें कैरेक्टर, थीम, प्लॉट, डायलॉग, नैरेशन, स्क्रिप्ट, कथा के महत्वपूर्ण भाग होते हैं। वहीं पर संगीत, ध्वनि प्रभाव एवं पॉज कथा के साथ आवश्यकतानुसार शामिल किया जाता है।
अब आगे हम इन तत्वों को एक-एक करके विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं।
9- रेडियो ड्रामा का सबसे पहला तत्व उसकी थीम मुख्य विचार है। इसके अंतर्गत विषयवस्तु का मूल होता है। इस पर केंद्रित होकर के रेडियो नाटक को लिखा जाता है। यह उसकी जानकारी देता है। रेडियो नाटक का थीम कुछ शब्दों से लेकर के एक दो पैराग्राफ में वर्णित किया जा सकता है। यह कहानी के मूल बिंदु को बतलाता है। नाटक का थीम जितना ही मौलिक और रोचक होता है, रेडियो नाटक उतना ही प्रभावी होता है। वह श्रोताओं के मन मस्तिष्क पर वह उतना ही अमित छाप छोड़ता है। जो भी नाटक प्रस्तुत किया जाता है, वह पूरे समय उसके मुख्य थीम के इस इर्द गिर्द ही समस्त घटनाएं घटती होती हैं। इसलिए थीम अपने आप में अनूठा और रचनात्मक होना चाहिए।
10 – किसी भी रेडियो नाटक की जो कथा होती है, वह उसी को ध्वनि रूप में नाटकीय तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें आरम्भ मध्य एवं अन्त होता है। कथा में समस्या उत्पन्न की जाती है और फिर उस समस्या के समाधान के लिए संघर्ष को दिया जाता है जो कि एक चरम स्थित तक जाता है। उसका फिर एक अर्थपूर्ण ढंग से अन्त होता है।
11 रेडियो ड्रामा में कैरेक्टर Character in radio drama
इस प्रकार रेडियो नाटक की कथा में सभी तत्व वही होते हैं जो किसी कहानी के होते हैं। इसके अंतर्गत इसकी कहानी आरंभ, मध्य एवं अंत भाग में विभाजित होती है। कथा के मध्य भाग को उत्तरोत्तर मध्य एवं पूर्वोत्तर मध्य के रूप में भी करके बताया जाता है। इसके अंतर्गत कहानी में समस्या, बाधा, संघर्ष आदि को बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है।
कहानी में जो भी कैरेक्टर होते हैं, उनकी संख्या सीमित ही रखी जाती है। रेडियो माध्यम पर बहुत बड़ी संख्या में कैरेक्टर को स्थापित कर पाना संभव नहीं है। आवश्यकतानुसार प्रत्येक कैरेक्टर की विशेषताओं का श्रोताओं को परिचित कराया जाता है। मुख्य कलाकार किसी प्रकार के लक्ष्य को लेकर के कहानी में आगे बढ़ता है। उसके समक्ष समस्याएं एवं बाधाएं उत्पन्न होती हैं। इन्हीं समस्याओं,बाधाओं से जूझते हुए वह एक ऐसे बिंदु तक पहुंचता है जिसे हम चरम अवस्था क्या नाम दे सकते हैं, उसी स्थिति में कहानी अपने अधिकतम रोचक स्थिति में नहीं पहुंच गई रहती है। किंतु इस संपूर्ण अवधि के दौरान कहानी के ताने-बाने को इस तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, जिससे कि श्रोता पूरी तन्मयता के साथ उसे जोड़ करके सुने। कहानी के चरम अवस्था के पश्चात , उसे शीघ्र समाप्त कर दिया जाता है।
इन सभी स्थितियों को दर्शाने में लेखक के कलात्मक लेखन कुशलता का अब बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। कहानी का ताना-बाना कितने ही रोचक तरीके से और संवादों को कितने रोचक तरीके से उसने प्रस्तुत किया है, उसकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है।
कहानी में विभिन्न पात्र भी शामिल होते हैं । इन्हीं के द्वारा कहानी के घटनाक्रमों को आगे संवाद के रूप में बढ़ाया जाता है, इसमें मुख्य पात्र सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र होता है। इसमें मुख्य पात्र के चरित्र चित्रण में विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। मुख्य पात्र एक आदर्श या संदेश प्रस्तुत करता है। अन्य सभी पात्र उसके सहायक अथवा उसके विरोधी होते हैं। कहानी में पात्रों को उनकी आवाज के माध्यम से ही दर्शाया जाता है। अतः आवाज के विविधता बनाए रखना नाटक के पात्रों की पहचान के लिए आवश्यक होता है। इसी के साथ हर एक पात्र की अपनी जो एक विशिष्ट व्यक्तित्व होता है, उसको भी दर्शाने के लिए उचित तौर तरीका अपनाया जाता है।
12 नाटक में संवाद- Dialogue in Radio Drama
रेडियो नाटक में विभिन्न पात्रों द्वारा जो कुछ भी बातें कही जाती है ,उसे डायलॉग अथवा संवाद कहते हैं । यह रेडियो नाटक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व होता है। नाटक की कहानी का दृश्य और अन्य प्रकार के ध्वनि प्रभाव इसी के माध्यम से स्पष्ट होती है । इसी के माध्यम से कहानी आगे बढ़ती है। अतः संवाद जितना ही स्पष्ट, प्रभावी और रोचक होगा, वह उतना ही अधिक प्रभाव डालेगा । उसे श्रोता उतनी ही तन्मयता के साथ सुनना पसंद करेंगे। संवाद के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यह कहानी एवं नाटक के पात्र के अनुकूल लिखा जाना चाहिए। जो पात्र जिस किसी भी और भूमिका में कहानी में शामिल हैं, उसी के अनुसार उसके शब्दों एवं वाक्यों की प्रस्तुति होती है। यह कहानी के विभिन्न पात्रों के सामाजिक और मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है। विभिन्न पृष्ठभूमि के पात्रों के संवाद, लेखन के संदर्भ में यह आवश्यक है कि उसके बारे में उचित शोध कार्य कर लिया जाए।
13 रेडियो नाटक में संगीत -Music in radio drama
रेडियो नाटक में संगीत का उपयोग कई तरह के कई उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाता है। यह नाटक के लगभग पूरे अवधि के दौरान बैकग्राउंड संगीत के रूप में उपयुक्त होता है। इसी के साथ-साथ संगीत खास प्रकार के परिवेश तैयार करने के लिए होता है। कई बार संगीत नाटक का एक ऐसा भाग होता है जो कि नाटक के विभिन्न पात्रों के द्वारा संगीत रूप में प्रस्तुत किया जाता है। कहानी के ऐसे भी पात्र हो सकते हैं जो कि गीत संगीत में रुचि रखते हैं और नाटकों में समय≤ पर वह संगीत को प्रस्तुत करते हैं।
संगीत के अलग अलग धुन का उपयोग कहानी के दृश्य के बदलने के लिए किया जाता है। इसी के साथ कहानी के फ्लैश बैक और फ्लैश फॉरवर्ड के बताने के लिए भी किया जाता है। कहानी के घटनाक्रम की तीव्रता और इसके माध्यम से ही कहानी के खास प्रकार के भाव को व्यक्त करने और श्रोताओं में उत्पन्न करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार से संगीत किसी खास स्थान, घटना के संकेत के लिए भी उपयोग किया जाता है। नाटकों में संगीत का उपयोग विभिन्न प्रकार के कल्पनात्मक दुनिया में ले जाने के लिए भी किया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि संगीत नाटकों का एक ऐसा तत्व है जो कि नाटक को गति प्रदान करने के साथ-साथ श्रोताओं के मन में नाटक के प्रति आकर्षण को बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाता है।
14 ध्वनि प्रभाव Sound effect of radio drama
नाटक में संवाद के अतिरिक्त जो और कोई भी ध्वनि इस्तेमाल की जाती है, वह ध्वनि प्रभाव के अंतर्गत होती है । यह ध्वनि प्रभाव वास्तविक रूप से उत्पन्न हो सकती है अथवा काल्पनिक रूप में भी इसका निर्माण किया जा सकता है। इसका भी संगीत की तरह ही विविध प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है। यह कई उद्देश्यों को पूरा करती है।
नाटक में बहुत सी घटनाएं में ध्वनियाॅं उत्पन्न होती हैं । ध्वनि प्रभाव नाटक में घट रही विभिन्न प्रकार की घटनाओं के संदर्भ में उत्पन्न ध्वनि को व्यक्त करके दृश्य की और प्रभावी रूप में प्रस्तुत करता है। घटनाओं के ध्वनि प्रभाव को सुनाने से श्रोताओं में घटनाओं के क्रियाकलाप परिवेश की जानकारी मिलती है। उसके अनुसार ही उनके अंदर भाव भी उत्पन्न होते हैं। ध्वनि प्रभाव घटनाओं को स्पष्ट करती है । इसी के साथ ध्वनि प्रभाव के माध्यम से विपिन प्रकार के घटनाओं के स्थान एवं कई बार समय की भी जानकारी मिलती है ।
उदाहरण के लिए चिड़ियों की चहचहाहट सुबह के संदर्भ में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसी प्रकार से घंटा बजने की आवाज मंदिर के परिवेश की जानकारी देती है । घड़ी की टिक टिक समय के प्रवाह को व्यक्त करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि ध्वनि प्रभाव का नाटक में बहुत ही महत्वपूर्ण उपयोग है। नाटक की स्क्रिप्ट लिखते समय इस लेखक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किस प्रकार की घटनाओं को वह संवाद के साथ-साथ ध्वनि प्रभाव अथवा संवाद के विकल्प में ध्वनि प्रभाव के रूप में व्यक्त कर सकता है।
विराम अथवा साइलेंस Silence in radio drama
15 रेडियो नाटक का एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व विराम अथवा साइलेंस या शांति भी है । वैसे तो साइलेंस का आशय शांति है। इसका अर्थ यही है कि किसी भी तरह की कोई आवाज या ध्वनि नहीं है। यह संवाद के दौरान एक प्रकार से विराम की स्थिति है। जिस दौरान कुछ भी नहीं कहा जा रहा है। किंतु किसी प्रकार के कोई ध्वनि न होना ही अपने आप में एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है। विभिन्न प्रकार के मनोभावों को व्यक्त करने के संदर्भ में इसका उपयोग किया जाता है। नाटक के संवाद को सही तरीके से प्रस्तुत करने के संदर्भ में भी साइलेंस का इस्तेमाल होता है। यदि यह उचित ढंग से इस्तेमाल किया गया तो फिर नाटक के प्रभाव में वृद्धि करता है । यदि सहज तरीके से उत्पन्न साइलेंस को सूचनाओं को नाटक के माध्यम से दी जा रही है तो वह सूचनाओं को प्रोसेस करने में मदद करता है ।
रेडियो नाटक में साइलेंस का उपयोग संवाद को बदलने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। वहीं पर ध्यान आकृष्ट करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है । जब कई बार लंबा विराम लिया जाता है तो उस स्थिति में यह किसी बात को जोर देने के लिए भी उपयोग किया जाता है । लंबा छोटा विराम लेने के अनुसार ही व्यक्त किए गए संवाद का अर्थ भी बदलते हैं। जैसे व्यावहारिक जीवन में इसका उपयोग किया जाता है, किंतु संवाद बोलने के दौरान इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अनावश्यक रूप इसका इस्तेमाल न किया जाए। यदि इसे कहीं पर आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल किया जाता है तो वह विपरीत असर भी डालता है ।
16 रेडियो नाटक लेखन के हेतु कहानी के विभिन्न स्रोत Different sources for writing radio drama
रेडियो नाटक लेखन के लिए कहानियों की आवश्यकता होती है । कहानी लेखन हेतु लेखक विभिन्न प्रकार के स्रोत का सहारा लेता है। अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के जो घटनाक्रम होते हैं उनका निरीक्षण एक कहानी लेखक बहुत ही सरल तरीके से करता है । उसकी संवेदनाएं अन्य की तुलना में कहीं अधिक होती है। उसके ही बल पर फिर वह उन घटनाओं को लेकर के कहानी का ताना-बाना बनाता है । इसलिए दैनिक जीवन की घटनाएं का निरीक्षण लेखक के लिए कहानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है । इसके अतिरिक्त वह कल्पनाओं के माध्यम से भी विभिन्न प्रकार की घटनाओंएक कहानी का रूप देता है ।
इसी प्रकार से इतिहास में वर्णित विभिन्न प्रकार की घटनाओं को पढ़कर के ऐतिहासिक घटनाओं को लेकर के अथवा उनके आधार पर अन्य तरीके के घटनाओं की कल्पना करके वह नाटक के लिए कहानी का लेखन करता है। विभिन्न प्रकार के जो साहित्य हैं वे भी नाटक के लिए एक महत्वपूर्ण कहानी के स्रोत हैं । इस प्रकार से जनमाध्यमों को देखने से भी विभिन्न प्रकार की जानकारियां मिलती हैं । उससे कहानी लेखन के लिए आईडिया मिलता है । इसी प्रकार से विभिन्न व्यक्तियों से भेंट मुलाकात एवं बातचीत करने से भी कहानी लेखन के लिए जानकारी और आईडिया लेखक को मिलता है । वह उन भेंट मुलाकातों के बीच से ऐसे जानकारियां प्राप्त कर लेता है जो कि उसके कहानी लेखन में सहायक होते हैं।
व्यक्तिगत अनुभव भी लेखक को कहानी लेखन के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूचना स्रोत है । लेखक व्यवहारिक जीवन में जो भी जीवन जीता है अनुभव करता है देखता है , वह सब उसको नाटकों के माध्यम से दिख लाने का प्रयास करता है।
17रेडियो कहानी लेखन के विभिन्न चरण Different steps for radio drama writing
रेडियो कहानी एवं नाटक लेखन के कई चरण होते हैं । सामान्य तौर पर कोई भी नाटककार उन्हीं चरणों से गुजरते हुए नाटक लेखन का कार्य करता है। कहानी का आईडिया आना इस लेखन का सबसे पहला चरण होता है । आइडिया एक बीज है जो कि आगे एक पौधे और वृक्ष के रूप में आकार ग्रहण करता है । इसके विभिन्न प्रकार की शाखा प्रशाखा हैं होते हैं । आइडिया घटनाक्रम के रूप में बनते हैं। आइडिया को हम छोटे कहानी के रूप में विकसित करते हैं । फिर वही छोटी कहानी को हम व्यापक भी कर सकते हैं । यह प्रायः कुछ पैराग्राफ की होती है । फिर इसको हम एक पूरी कहानी के रूप में विकसित किया जाता है। इसे लोग पढ़ते हैं जिसने की भिन्न-भिन्न घटनाक्रम प्लाट आदि का वर्णन होता है।
आइडिया में कैरेक्टर के बारे में बहुत ही थोड़ी सी जानकारी प्राप्त होती है। कई बार उसके बारे में कोई भी जिक्र नहीं किया गया रहता है। सिनॉप्सिस में पात्रों को लेते हुए संक्षेप में कहानी को बता दिया जाता है । किंतु जब पूर्ण कहानी लिखी जाती है तो फिर उसके घटनाओं को ढंग से कहानी के रूप में वर्णित करते हैं । कई बार कहानी बहुत लंबी रूप में लिखी गई रहती है। फिर कहानी के आधार पर अलग-अलग घटनाओं के दृश्य का वर्णन किया जाता है । इसमें शामिल विभिन्न पात्रों के संवाद को ऐसे लिखा जाता है जिससे कि वे रेडियो नाटक के दौरान बोलते हैं। इस तरह से रेडियो लेखन के 4से लेकर के 5 चरण कहे जा सकते हैं।
रेडियो ड्रामा स्क्रिप्ट लेखन के फॉर्मेट Radio drama script formats
रेडियो नाटक लेखन के संदर्भ में जो स्क्रिप्ट लिखी जाती है उसका एक खास तरीके का फॉर्मेट भी होता है । जो कोई भी लेखक रेडियो नाटक लिख रहा है, उसको रेडियो नाटक पर स्क्रिप्ट के फॉर्मेट को भी जानकारी रखनी चाहिए । यह फॉर्मेट बहुत ही सरल आकार का होता है । किंतु इसमें कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है । सर्वप्रथम तो पेज को सामान्य तौर पर दो भागों में विभाजित कर लिया जाता है । एक तरफ पात्रों आदि के नाम वर्णित होते हैं । दूसरी तरफ उनके द्वारा बोले जाने वाले संवाद एवं अन्य बातों का जिक्र किया गया रहता है । कई बार पेज को दो भागों में नहीं बांटते हैं । पात्रों के नामों को पेज के बीच में लिख कर के उसके नीचे उनके संवाद को लिखा जाता है । लेखन के लिए पक्तियों के बीच में जो जगह छोड़ी जाती है, वह नॉर्मल स्पेस की जगह पर डबल स्पेस में होती है ।
स्क्रिप्ट पढ़ने के दौरान किसी प्रकार की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता है । कोई भी संवाद जो कोई बोल रहा होता है , उसके बोलने का अगर कोई खास भाव है तो पात्र के नाम के आगे उसे ब्रैकेट में लिख देते हैं । जैसे रोज के साथ ऊंची आवाज में । इसी तरीके से स्क्रिप्ट में जहाॅं कहीं भी ध्वनि प्रभाव, संगीत प्रभाव या संगीत को शामिल किया जाना रहता है वहां पर उसे बोल्ड लेटर में लिखते हैं । इससे कि वह संवाद से अलग होकर के दिखे।
तो इस प्रकार से रेडियो नाटक के बारे में आज हमने जो चर्चा की। इसके अंतर्गत रेडियो नाटक क्या है, रेडियो नाटक का क्या महत्व है। रेडियो नाटक की अपनी विशेषताएं क्या है और इसके प्रमुख तत्व क्या है, इसके बारे में चर्चा की गयी । हमें उम्मीद है कि यह लेक्चर आपको उपयोगी लगा होगा । इसके बारे में आप हमें अवश्य जानकारी दीजिएगा। रेडियो नाटक लेखन के संदर्भ में और बातें रेडियो नाटक लेखन लेक्चर में अलग से दिया गया है। इसको सुनकर कि आप रेडियो नाटक कैसे लिखते हैं उसको आप बता सकेंगे।