December 22, 2024

Development communication and journalism is one important dimension of mass media. Several theories of development and about the role of media have also been developed during last several decades. This article discusses various dimensions of development communication.

विकास सिद्धान्त और संचार

इसे भी पढ़ेंElements of Communication

          विकास एवं विकास के सिद्धान्त के सन्दर्भ में काफी बातें कही गयी है और  इसकी नये ढंग से परिभाषाएं दी जाती रही हैं। विकास की अवधारणा कई प्रकार से की गयी है। यह विभिन्न चरणों  हो कर गुजरते हुए वर्तमान स्वरूप  में आया है। पिछली सदी के साठ एवं सत्तर के दशक विकास को आर्थिक पक्ष से ही जोड़ करके प्रस्तुत किया जाता रहा है । अर्थात विकास का अर्थ आर्थिक विकास ही माना जाता था । इसका मुख्य कारण उस समय की यह प्रचलित धारणा रही है कि आर्थिक स्थिति में सुधार से मानव जीवन के अन्य क्षेत्रो एवं स्थितियों में भी सुधार हो जायेगा। अतः विकास हेतु विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन, बदलाव, शहरीकरण एवं  औद्योगिकरण की प्रक्रिया पर  काफी महत्व दिया गया।

              विकास के सन्दर्भ में दिये गये विभिन्न प्रकार के सिद्धान्त एवं माडल में से कई सिद्धान्तों को तो व्यवहारिक स्तर पर लागू भी किया गया । इनमें कुछ को सफल तो कुछ सिद्धान्तों को असफल सिद्धान्त के रूप में भी देखा गया। समय के साथ नये नये विकास सिद्धान्त भी लगातार आते रहे हैं। इसमे से कई पिछले सिद्धान्तों की कमियों को दूर करने के प्रयास में भी विकसित किये गये हैं। विकास सिद्धान्तों के विकसित होने की प्रक्रिया अभी भी लगातार जारी है। पूर्व में दिये गये कुछ सिद्धान्तों को नये ढंग से भी प्रस्तुत किया जाने लगा है।  विकास प्रक्रिया में हमेशा से जनसंचार माध्यमों की भूमिका को स्वीकार किया गया है। इस लेख में विकास एवं उसके सन्दर्भ में विकसित किये गये विविध प्रकार के सिद्धान्तों के विश्लेषण करने का प्रयास करते हुए विकास पत्रकारिता के विविध पक्षों का वर्णन किया गया है। 

विकास की परिभाषा Definition of Development

          विकास एक सतत प्रक्रिया है। विकास को विविध ढंग से परिभाषित किया जाता है। विकास के लिए कई दूसरे समानार्थी शब्द भी विकसित किये गये हैं। बदलाव एवं सुधार जैसे पद भी  विकास के समानार्थी ही माना जाता रहा है। विकास के अन्तर्गत  मानव के आध्यात्मिक विकास  से ले करके उसके आर्थिक ,सामाजिक , राजनीतिक ,साॅस्कृतिक , तकनीकी विकास एवं इसी प्रकार के अन्य क्षेत्रों में होनें वाले विकास को शामिल किया गया  है। उन्नीसवी शदी के  पचास , साठ एवं सत्तर के दशक में  विकास को विविध प्रकार से परिभाषित करते हुए कई सिद्धान्त भी विकसित किये गये। किन्तु विकास के किसी भी प्रकार के अवधारणा एवं परिभाषाको कभी भी पूर्ण रूप में नही स्वीकार किया जा सका है। 

         इक्कीसवीं सदी के आरम्भ में विकास को एक बहुत ही जटिल भागीदारीपूर्ण एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, जिसमें कि सामाजिक क्षेत्र के परिवेश में एक जिम्मेदारीपूर्ण तरीके से  सुधार के माध्यम से जीवन के सम्पूर्ण क्षेत्र में गुणात्मक सुधार लाया जाता सके। विकास के लिए  विविध प्रकार के संचार साधनों का इस्तेमाल किये जाते है।

     वर्तमान में विकास का आशय समाज में बेहतरी के लिए बदलाव ले आना होता है। यह सुधार या विकास  आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक आदि क्षेत्रों में हो सकते है।  विकास को  बदलाव एवं सुधार की एक प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है। इसे समाज से भूख, बीमारी, अन्याय, अत्याचार को दूर करने का प्रयास किया जाता है। विकास एवं विकास पत्रकारिता करने के सन्दर्भ में कई सिद्धान्तों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू भी किया गया। पिछली सदी से ले करके वर्तमान तक विकास के सन्दर्भ में निम्न मुख्य सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये है।

विकास का मॉर्डनाइजेशनया या आधुनिकीकरण  सिद्धान्त Modernization theory of development

               उन्नीसवीं सदी में विकास के लिए पष्चिमी देशों द्वारा विकसित किया गया  सिद्धान्त एवं माडल काफी प्रचारित किया गया है। इसमें आधुनिकीकरण एवं शहरीकरण, आर्थिक विकास, औद्योगिकरण  की बातें मुख्यतः कही गयी हैं। इस प्रकार के विचार के प्रतिपादक डेनियल लर्नर , विल्बर श्रैम एवं लुसियन पाई , इ़़.एम. रोजर्स आदि के नाम शामिल हैं। 

        पचास के दशक में दुनिया कई देश औपनिवेशिक शासन से मुक्ति पा करके अपने अपने ढंग से विकास के मार्ग पर वे पश्चिम के देशों की तरह औद्योगिकरण के माध्यम से आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। इसमें से कुछ आधारभूत उद्योग स्थापित करके निर्यात करने का प्रयास कर रहे थे, वहीं पर कुछ दूसरे विविध प्रकार के उत्पाद करने का प्रयास कर रहे थे, जिससे कि आयात को कम कि जा सके। इसी क्रम में ये देश पश्चिम के देशों के अन्य राजनीतिक प्रक्रिया को भी अपनाने का प्रयास करने लगे।

          इस सिद्धान्त के अनुसार सैकड़ों साल पहले पूरी दुनिया में पिछड़ापन रहा। यद्यपि वैज्ञानिक खोज सभी जगहों पर थी , किन्तु विभिन्न कारणों से पश्चिम देशों में इसका विषेशतौर पर विकास हुआ और वहाॅ पर आर्थिक एवं तकनीकी वृद्धि हुई, जिस कारण से समाज का विकास हुआ। किन्तु तीसरी दुनिया में इस प्रकार के बदलाव नही हुए और वे काफी पिछड़ गये।   

           इस सिद्धान्त में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने और वैज्ञानिक सोच आधारित एक समाज बनाने पर जोर दिया गया। संक्षेप में कहा जाये तो आधुनिकीकरण के सिद्धान्त ने विकासशील देशों के उन खामियों को गिना करके उसे उनके पिछड़ेपन का कारण बताया और उन्हे दूर करके एक नये तौर तरीके वाले आधुनिक समाज के स्थापना पर बल दिया। इसके लिए इसने तमाम प्रकार के उपायों को सुझाया।

डिफ्यूजन आफ इनोवेशनका सिद्धान्त Diffusion of innovation theory of development communication

          डिफ्यूजन आफ इनोवेशन विकास का एक सिद्धान्त है जो कि यह बताने का प्रयास करता है कि किसी प्रकार के नये आइडिया किस दर से कैसे एवं क्यो किसी सभ्यता संस्कृति में फैलता है। संचार के प्रोफेसर ई.एम. रोजर इस सिद्धान्त के प्रणेता रहे हैं। उनकी लिखी पुस्तक डिफ्यूजन आफ इनोवेशन पहली बार 1962 में प्रकाशित हुई। डिफ्यूजन वह प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत नये आइडिया को एक निश्चित अवधि तक निश्चित माध्यम चैनल से  किसी सामाजिक सिस्टम के लोगों के बीच प्रसारित किया जाता है।

      डिफ्यूजन  आफ इन्नोवेशन सिद्धान्त  समय के साथ विस्तृत भी हुआ। रोजर ने  नये प्रकार के आइडिया के प्रसार के सम्बन्ध में चार तत्वों की कल्पना की थी। ये थे इनोवेशन, कम्युनिकेशन चैनल ,समय एवं सोशल सिस्टम । इस सिद्धान्त की सफलता का दारोमदार काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि किस प्रकार के नये आइडिया को विस्तृत रूप  में ग्रहण किया जाना चाहिए। नये आइडिया की स्वीकार्यता की दर में एक स्थित वह आती है जिसमें कि यह उचित संख्या में लोगों तक पहुॅच जाती है। डिफ्यूजन की प्रक्रिया भिन्न भिन्न समाज, संस्कृति, वर्ग एवं क्षेत्र में भिन्न भिन्न प्रकार से होती है। यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि इसे कौन ग्रहण कर रहा है और उनका इनोवेशन डिसीजन प्रोसेस  क्या है। इसे ग्रहण करने वालों एडाप्टर को भी कई वर्गो में विज्ञाजित किया गया है। 

          डेनियल लर्नर ने मोबिलिटी मल्टीप्लायर के रूप में मीडिया को देखा। इसका आशा यही है कि मीडिया किसी प्रकार के नये विचार को ग्रहण करने वाले लोगों में गुणात्मक ढंग से बढ़ोत्तरी करता है। इसी प्रकार से विल्बर श्रैम ने जनमाध्यमों मैजिक मल्टीप्लायर के रूप  में देखा। इसके अनुसार मीडिया बहुत ही तेजी के साथ काफी अधिक  लोगों में नये प्रकार के विचार का प्रसार करता है।

     डेनियल लर्नर द्वारा विकसित की गयी अवधारणा के अनुसार  बेहतर जीवन प्रदान करने में मीडिया एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उत्पादकता , साक्षरता , शहरीकरण एवं समझ बढ़ाने में योगदान करता है, जिससे कि लोगों के जीवन स्तर में बदलाव आता है। उसने अपनी पुस्तक -द पासिंग आफ ट्रेडीशनल सोसाइटी, में उन्होने कहा है कि उत्पादकता , साक्षरता , शहरीकरण  में प्रीति मात्र से तब तक बदलाव संभव नही है जब तक कि मीडिया लोगों में बदलाव के लिए चाह नही उत्पन्न करती है। इस प्रकार उन्होने में विकास में मीडिया की एक सक्रिय भूमिका की पहचान की , जिसके माध्यम से लोगों में बेहतर जीवन शायरी अपनाने की चाह पैदा होती है।

      डेनियल लर्नर की भाॅति विल्बर श्रैम ने तीसरी दुनिया के विकास कार्य की प्रक्रिया में काफी महत्वपूण कार्य किया है। उनकी “मास मीडिया एवं नेशनलडेवलपमेन्ट” नाम की पुस्तक में विकास एवं मीडिया की भूमिका के बारे में काफी विस्तार के साथ चर्चा की गयी है। डेनियल लर्नर ने जनमाध्यमों के उपयोग एवं आधुनिकीकरण की महत्वपूर्ण विचार सामने प्रस्तुत किया। आधुनिकीकरण को उसने पश्चिमीकरण से जोड़ करके देखा। किन्तु कई देषों ने राजनीतिक कारणों से पश्चिम देशों से स्वयं को दूर रखते रहे हैं। इसलिए आधुनिकीकरण शब्द कहीं ज्यादा उपयोग में लाये जाने लगा। इस प्रकार उसने पारम्परिक सामन्ती शासन  से हट करके आधुनिक औद्योगिक समाज की कल्पना किया। अपने विकास  माडल में उसने निम्न परिकल्पना की।

 – ऐसे लोगों का समूह जो कि मानसिक स्तर पर आसानी के साथ अपने व्यक्तिगत जीवन में बदलाव के प्रति झुकाव रखते हो और उसके प्रति तैयार हो।

 – एक बहुत ही शक्तिशाली जनमाध्यम जो कि सामाजिक एवं व्यक्तिगत बदलाव के लिए आधुनिकीकरण के अनुकूल  नये विचार एवं दृष्टिकोण के प्रचार एवं प्रसार में सहायक हो।

– आधुनिक समाज स्थापित करने के लिए शहरीकरण , साक्षरता , मीडिया एक्पोजर , एवं राजनीतिक एवं आर्थिक सहभागिता ।

         डेनियल लर्नर ने यह महसूस किया कि पारम्परिक समाज की विकास में सहभागिता काफी कम है। उसका तुलना में आधुनिक समाज की भागीदारी काफी अधिक है। पारम्परिक समाज एवं आधुनिक समाज की जीवन के तौर तरीके में काफी भिन्नता है। पारम्परिक समाज एक बहुत ही सीमित दायरे में रह करके अपने जीवन को जीता है और वह अपनी बहुत ही कम आवश्यकता भी रखे हुए होता है। दूसरी तरफ, आधुनिक समाज के किया कलाप काफी अधिक सक्रियता वाले एवं भागीदारीपूर्ण ढंग से होते हैं। इसमें आधुनिक शिक्षा दी जाती है। ये लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में काफी बढ़ चढ़ करके भाग लेते हैं।

                भारतीय संचार वैज्ञानिक लक्षमण राव 1963 विकास प्रक्रिया के सन्दर्भ में अपने शोध कार्य के माध्यम से इस बात को साबित किया कि नये प्रकार के आइडिया, विचार उनके विकास में सहायता करते हैं, वे बेहतर जीवन अपनाने के लिए प्रेरित होते है। इस सन्दर्भ में उन्होने दो गाॅंवों का चयन करके यह दिखाने का प्रयास किया कि जिस गाॅव में शहर से जोड़ने वाली सड़क की सुविधा थी, वहाॅ आधुनिकता की प्रकिया आरम्भ हो गयी और सड़क के कारण लोग नये  विचार एवं जीवन षैली को अपना सके और मीडिया इस कार्य को  से प्रभावित हुए और वे शहरी जीवन को देखने में सक्षम हो सके। इससे उनके मस्तिष्क में नये विचार आने लगे और वे बदलाव के लिए तैयार हुए । इस प्रकार के नयंे आइडिया पहले उच्च वर्ग के लोगों के पास पहुॅचा फिर वह धीरे धीरे नीचे भी पहुॅचने लगा।

         मालकोटे एवं स्टीव ने यह पाया कि सूचना की मात्रा एवं गुणवत्ता जिसने कि कोठारू गाॅंव में बदलाव ले आया उसमें  नयी सड़क एवं जनमाध्यमों ने बाहर से आधुनिक विचार गाॅव के लोगों तक पहुॅचाया। उनमें शिक्षा पाने के प्रति काफी अधिक उत्सुकता रही है। 

         डिफ्यूजन आफ इन्नोवेशन के शोध ने स्थानीय स्तर पर आधुनिकीकरण में संचार के महत्व को स्थापित  किया। किन्तु समय के साथ यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी नही हो पाया।  धीरे धीरे इसकी जगह पर सोशल मार्केटिंग का उद्भव हुआ जो कि विकास एवं सामाजिक बदलाव के दूसरे ढंग के माडल प्रस्तुत किये। सोशल मार्केटिंग  विकास के लिए एक ऐसा अप्रोच रहा है जिसने कि डिफ्फयूजन आफ इन्नोवेशन के गुणों को काफी हद तक ले करके आगे बढ़ा।

  आधुनिक सिद्धान्त की असफलता Failure of modern theory of development

      एक समय बाद आधुनिकता के सिद्धान्त की सफलता पर आशंका व्यक्त की जाने लगी। यह पाया गया कि जिन देशों ने इसका पालन किया, वहाॅं पर अपनाये गये विकास का परिणाम  उम्मीदों के अनुरूप  नही रहा। इसमें कुछ लोगों को ही फायदा मिला। शेष लोग इसके लाभ से वंचित रहे। इसी प्रकार, सरकार के लिए माध्यम एक बहुत बड़े प्रचार के साधनमात्र बन गये। इसके कई अन्य प्रकार के नकारात्मक प्रभाव भी सामने आये। इस माडल में विकसित देशों के सांस्कृतिक तौर तरीके को विकास का सबसे बड़ा कारण माना गया था । किन्तु यह एक गलत अवधारणा पर आधारित थी।

विश्व तंत्र का सिद्धान्त World system theory of development

     इस सिद्धान्त के उदय होने के पीछे कई प्रकार के कारण रहे हैं। इसमें तीसरी दुनिया के देषों में नये प्रकार के स्थितियाॅं उत्पन्न हुई जिसमें कि उनके स्तर के ऊपर उठाने के लिए प्रयास किये जाने की आवश्यकता हुई। वर्ड सिस्टम के अन्तर्गत एक सोशल सिस्टम दुनिया के आर्थिक व्यवस्था से जुड़े हुए है।  यह नयी स्थिति अंतरराष्ट्रीय वित्त एवं व्यापार सिस्टम ने अधिक लचीला स्वरूप अपनाने के कारण आरम्भ हुई जिसमें कि किसी देश के सरकारों की कम से कम भूमिका रहती है। तीसरी दुनिया के कुछ देशों में काफी अधिक प्रगति हुई, वही पर सोशलिस्ट में विखराव एवं आर्थिक स्थित में गिरावट भी दर्ज हुई।

            पूरी दुनिया में कई अन्य इस प्रकार के घटनाक्रम भी हुए जिससे कि वर्ड सिस्टम थियरी का उद्गम हुआ। वर्ड सिस्टम थियरी का प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी महसूस किया गया।  इस सिद्धान्त को मानने वालों के अनुसार विश्व स्तर पर कुछ ऐसे कारक रहे हैं जो कि छोटे एवं विकासशील देशोंकी स्थिति के लिए निर्धारक की भूमिका निभाते हैं। इसलिए देश स्तर पर ही विश्लेषण से इनके विकास के सही स्थिति का आकलन कर पाना संभव नही है। नये विश्व व्यापार एवं नयी विश्व सूचना व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था ,ज्ञान एवं सूचनाओं का स्थानान्तरण  ऐसे   कारक रहे हैं जो कि इन देशों के आन्तरिक स्थिति पर सबसे अधिक प्रभाव डालते हैं।

परस्पर निर्भरता का सिद्धान्त Mutual dependency theory of development communication

            विकास  का यह सिद्धान्त भी इस अर्थ में  मॉर्डनाइजेशन सिद्धान्त की तरह ही है कि यह भी आर्थिक विकास की बात करता है। किन्तु  इसमें विकास एवं कम विकास एक ही प्रकार की प्रक्रिया का दो पहलु हैं। इस सिद्धान्त का यह मानना है कि आधुनिक दुनिया एक ही प्रकार के पूॅजीवादी विश्व अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत आते हैं। विकास प्रक्रिया राष्ट्रीय सीमाओं से परे हट करके पूरे दुनिया के सन्दर्भ में होती है और विश्व की अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखे बगैर विकास को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखने का कोई मतलब नही है। यह सिद्धान्त संचार एवं विकास के सन्दर्भ में ग्लोबल ढाॅचा खड़ा करने की वकालत करता है। अपने उद्गम के बाद से इस सिद्धान्त में समय के साथ लगातार विस्तार के साथ ही इसमें बदलाव एवं सुधार भी किये गये हैं। यह बदलाव इस सिद्धान्त के सन्दर्भ में नये बातों की खोज एवं ज्ञान विस्तार के साथ ही होता रहा। 

इसे भी पढ़ें Touch communication क्या होता है स्पर्श संचार

       इस सिद्धान्त में जो संचार माडल  दिया गया, उसमें आर्थिक व्यवस्था पाने के लिए  संचार को एक बहुत ही आवश्यक मानते हुए विकसित एवं विकासशील देशों के बीच संचार के सन्दर्भ में अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध पर जोर दिया दिया गया है।

निर्भरता या डिपेडेंसी का सिद्धान्त- Dependency theory of development communication

        आधुनिकीकरण एवं पारस्परिक निर्भरता के सिद्धान्त के असफल होने पर डिपेंडेंसी या फिर निर्भरता के सिद्धान्त का उदय हुआ। इस माडल ने उन कारणों को पहचानने की कोशिशकी जिस कारण विकास कार्यक्रम और पहले दिये गये विकास सिद्धान्त सफल नही हुए हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार विकास संचार माध्यमों ने विकसित देशों के ही हितों को पूरा किया है।

            इस सिद्धान्त के अनुसार विकासशील देशोंके संसाधन विकसित देशों में प्रवाहित किये जाते है। इस प्रकार इन देषों की कीमत पर विकसित देश और भी सम्पन्न हो रहे हैं। आधुनिकीकरण सिद्धान्त के विपरीत इस सिद्धान्त का यह मानता है कि सभी देष समाज , विकास के एक ही प्रक्रिया से हो करके नही गुजरते हैं। गरीब देष अपने प्राकृतिक संसाधन एवं सस्ते लेबर उपलब्ध कराते हैं। इससे विकसित देशों को और आगे बढ़ने का अवसर उपलब्ध होता है। इसके बगैर वे विकसित नही हो सकते हैं। विकसित देशइस स्थित को लगातार बनाये  रखते हैं। वे किसी भी ऐसे प्रयास का विरोध करते हैं, जिसमें कि इस स्थिति में किसी प्रकार के बदलाव का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार , विकासशील देशोंमें गरीबी का मुख्य कारण विकसित एवं विकासशील देशों की एक खास प्रकार के सम्बन्ध है।

इस सिद्धान्त के मानने वाले तीसरी दुनिया या थर्ड वर्ड के अवधारणा की बात को अस्वीकार करते हैं। उनके अनुसार एक ही प्रकार की आर्थिक व्यवस्था है, और उसमें दुनिया के देश कई स्तरों पर विभाजित है।

आधारभूत आवश्यकता का सिद्धान्त या बेसिक नीड थियरी  Basic Need theory of development

         यह विकास माडल इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन द्वारा 1976 में प्रतिपादित किया गया। यह उस समय तक दिये गये उस विकास माडल के प्रतिक्रिया में एक प्रकार से विकसित किया गया था, जिससे गरीबी एवं विकासशील देशों में व्याप्त असमानता दूर करने  हेतु किये जा रहे प्रयासों के संतोषजनक परिणाम नही मिल पा रहे थे।   यह माडल सर्वाधिक गरीबों के आधारभूत आवश्यकता को पूरी किये जाने की वकालत करता है। इसमें गरीबों को अच्छे ढंग से रहने के लिए एक न्यूनतम संसाधनों को उपलब्ध कराने की बात कही गयी। गरीबी रेखा के माध्यम से इसने एक न्यूनतम आवश्यकता को परिभाषित किया जिसे कि किसी व्यक्ति को अवश्य उपलब्ध कराया जाना चाहिए। यह सिद्धान्त आर्थिकतौर पर उत्पादन हेतु विभिन्न क्रिया कलापों पर जोर देने के बजाय लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की बात कहता है। 

        इसके अनुसार समाज में बहुत बड़ी संख्या में लोग मूलभूत आवश्यकता से पूरी तरह से वंचित हैं। उन्हे भोजन , स्वास्थ्य , षिक्षा , आवास आदि की सुविधा नही मिल पा रही है। इसका एक कारण यह भी है कि इन लोगों को समय से सूचना एवं जानकारी मिल पाती है।  दूसरी तरफ, कुछ लोग ऐसे हैं जो कि समाज को प्रभावी रूप  में रहते हैं और विकास कार्यो का लाभ लेते हैं। इस प्रकार के लोग अपनी खास प्रकार की स्थिति के कारण ही समाज के विविध प्रकार के क्रिया कलाप का फायदा उठाते रहे है।

इस सिद्धान्त की भी कई प्रकार से निन्दा भी की जाती रही है क्योकि इसमें उत्पाद को बढ़ावा  देने की कोई नीति नही है और यह कि इससे विकासशील देश हमेशा के लिए पिछड़े बने रह सकते हैं।

नियोलिबरेलिस्ट थियरी

        यह सिद्धान्त सत्तर के दशक के आखिरी वर्षों में काफी प्रभावी रूप में देखा जाने लगा और 1980 से इसे लागू किया जाने लगा । एक प्रकार से यह पहले दिये गये क्लेसिकल अर्थव्यवस्था का एक नया रूप था जो कि किसी उत्पाद के मूल्य एवं उन कारकों को ध्यान में रखने की बात करता है जिस पर कि उत्पाद निर्भर करता है। इसमें मुक्त बाजार होने तथा सरकार द्वारा बाजार में किसी प्रकार के हस्तक्षेप  न करने की बात कही गयी थी। इस सिद्धान्त के पक्षकारों का मानना है कि इससे समाज को फायदा होगा। इस सिद्धान्त को उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री माग्रेट थैचर एवं अमेरिका में राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन के जीत से काफी बढ़ावा भी मिला और विश्व बैंक ने बेसिक नीड के सिद्धान्त से हट करके इसी सिद्धान्त को अपनाना आरम्भ कर दिया ।

विकास  के नये सिद्धान्त New theory of development communication

   ऊपर वर्णित किये गये सभी सिद्धान्त के अतिरिक्त कई और भी विकास सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये । इन सिद्धान्तो के देने वाले विशेषज्ञों ने इसके पक्ष के अपने अपने एंग से विविध तर्क दिये है। इस अध्याय की सीमा को ध्यान में रखते हुए उसमें से कुछ प्रमुख एवं इनके अपेक्षाकृत  नये उन सिद्धान्तो की चर्चा की जा रही है जो वि वर्तमान काफी चर्चित है।

पोस्ट डेवलपमेन्ट सिद्धान्त

        यह सिद्धान्त 1980 एवं 1990 के दौरान आया। इसने विकास को एक बहुत ही गुजरे दिनों का विचार कह करके इसके अपनाये जाने की निन्दा की।  इस सिद्धान्त के अनुसार विकास का विचार एक मानसिक ख्याल भर है जो कि विकसित एवं विकासशील देशों के आगे बढ़ने के क्रम के सन्दर्भ में देखा जाता है और इसमें  विकासशील देश विकसित देश की भाॅति बनने की कोशिश करते हैं। विकास एवं विकास करने की सोच या कल्पना मुख्यतः विकसित देषों द्वारा ही  की गयी। किन्तु पश्चिम की जीवन जीवन शैली न तो वास्तविक है और न ही यह शेष दुनिया के लिए अनुकरणीय उदाहरण है।  इस सिद्धान्तवादियों के अनुसार अभी तक विकास को अपनी देश के संस्कृति स्वयं अपने प्रति अपनाये जाने वाले नजरिया , एवं जीवन के तौर तरीको को नुकसान पहुॅचा करके देखा जा रहा है।   

         इस सिद्धान्त के एक प्रतिपादक मजीद के अनुसार गरीब की परिभाषा संस्कृति से जुड़ करके देखी जानी चाहिए और यह भिन्न भिन्न संस्कृति में भिन्न भिन्न हो सकती है। अतः विकास के सन्दर्भ  में किसी प्रकार के सोच में सांस्कृतिक जुड़ाव को भी ध्यान दिया जाना चाहिए। वह समाज में एक ऐसे सोच का प्रस्ताव करते हैं जो कि वर्तमान में प्रभावी ढंग से लागू विचार को दूर कर सके। इस सिद्धान्त की भी कई प्रकार से आलोचना की गयी है। कुछ आलाचकों के अनुसार विकास का यह सिद्धान्त एक नये प्रकार का औपनिवेशिक साम्राज्य खड़ा कर रहा है। इस सिद्धान्त में किसी प्रभावी राजनीतिक विकल्प को प्रस्तुत नही किसा जा सका है।

 सहभागी विकास का सिद्धान्त Participatory theory of development and communication

 सहभागी विकास का सिद्धान्त सभी प्रकार के विकास के प्रतिक्रिया स्वरूप विकसित हुआ। इसे विकास के नये सिद्धान्त के रूप में देखा गया। इसके अनुसार किसी भी प्रकार की विकास कार्य में लोगों की भागीदारी आवश्यक है। इसके बगैर विकास कार्य का हो पाना संभव नही है। यह भागीदारी हर स्तर पर होनी चाहिए। जब भी किसी प्रकार का कोई विकास कार्य आरम्भ किसा जाता है तो उसके आरम्भ किये जाने से ले करके आखिर तक के निर्णय प्रक्रिया में आम लोगो की भागीदारी की जानी वाहिए। यह सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को इसमें शामिल नही किया जा सकता है, किन्तु विभिन्न समाज के लोगों का प्रतिनिधित्व  को इसमें शामिल किया जा सकता है। 

सतत् या टिकाउ विकास Sustainable development

          सस्टेनेबुल डेवलपमेन्ट को हिंदी में सतत या टिकाऊ विकास कहते हैं। यह विकास का वह सिद्धान्त  है जिसमें कि वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति की इस प्रकार से करती है, जिससे कि भविष्य की पीढ़ी की उनकी अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से किसी प्रकार के समझौता नही किया जाता है। इस विकास सिद्धान्त की कई और प्रकार से भी परिभाषाएं दी गयी है। किन्तु वे सब इस मामले में एक ही प्रकार के है कि वे पृथ्वी की क्षमता, प्राकृतिक साधनों के इस्तेमाल एवं मानव द्वारा सामना किये जा रहे चुनौतियों से सम्बन्धित है। 

इसे भी पढ़ें  Proximity in communication

       सस्टेनेबुल डेवलपमेन्ट कई वर्गो में विभाजित किया जा सकता है।  ग्लोबल वार्मिंग सहित कई ऐसे ऐसे मुद्दे रहे हैं, जिसे कि सस्टेनबुल डेवलपमेन्ट आंदोलन करने वाले लगातार उठाते रहे हैं।  विकास  के इस सिद्धान्त का विरोध करने वालों का मानना है किसी भी प्रकार के आर्थिक विकास में पर्यावरण पर प्रभाव पड़ना अनिवार्य है और प्रदूषण वाले उत्पाद लगातार बढ़ते रहते है। इससे बचा नही रहा जा सकता है। किन्तु इस प्रकार के प्रदूषण एक निश्चित मात्रा तक ही बढ़ती है, और उसके बाद इसमें एक स्थिरता आ जाती है । इसलिए विकास वृद्धि परक आर्थिक नीति की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ यही है कि उत्पाद विरोधी के बजाय उत्पादोन्मुखी नीति की आवश्यकताहै जिससे कि पर्यावरण की रक्षा की जा सके। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि तकनीक में और अधिक विकास से विविध प्रकार की समस्याएं हल हो सकती है।

मानव विकास सिद्धान्त Human development

          मानव विकास सिद्धान्त का मूल विचार विविध प्रकार से स्रोतों से लिया गया है। इसमें इकोलाजी, सस्टेनबुल डेवलपमेन्ट, कल्याणकारी अर्थशास्त्र , नारीवाद आदि मुख्य हैं। यह इस बात पर ध्यान देता हैं कि किस प्रकार से विविध संसाधनों का  इस्तेमाल ह्यूमन कैपीटल के सम्पूर्ण मान को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।

            अमर्त्य सेन एवं महबूबउल हक इस प्रकार के विकास सिद्धान्त के मुख्य रूप से प्रतिपादक रहे हैं। इस विकास सिद्धान्त का मूल आइडिया मानव विकास सूचकांक भी है। अमर्त्य सेन का शोधकार्य तो मानव क्षमता पर ही केन्द्रित रहा है। उनके अनुसार लोग क्या कर सकते हैं, यह बात काफी महत्वपूर्ण है। आय एवं अन्य सामान्य व्यक्ति जो कुछ भी पा रहा है, उसकी जगह व्यक्ति की क्षमता उसके अच्छे होने की स्थिति को कही बेहतर ढंग से बतलाती है। इस प्रकार, मूलभूत आवश्यकता की जगह पर उनकी क्षमता ही उनके अच्छे होने का एक बहुत ही सही मापदंड है।

    यह मूल विचार मानव विकास सूचकांक के अवधारणा को जन्म दिया है जो कि मानव केन्द्रित विकास के मापन सिद्धान्त पर आधारित है। इसे यूएएनडीपी द्वारा अपने मानव विकास रिपोर्ट में स्थापित किया गया है। सेन के आर्थिक पक्ष को कल्याणकारी अर्थषास्त्र के अन्तर्गत दिया जा सकता है। यह आर्थिक नीति के प्रभाव को लोगों की स्थिति में सुधार के रूप  में मापता है।  अमत्र्यसेन ने ”डेवलपमेन्ट ऐज फ्रीडम“ नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें कि उन्होने विकास अर्थशास्त्र में मूल्यों की बात को भी जोड़ा है।

        मानव विकास सूचकांक का सृजन इस बात पर जोर देने के लिए किया गया है ही कि आर्थिक विकास के बजाय किसी देश के विकास का मुल्याॅंकन आधार मानव , उसकी क्षमता एवं योग्यता ही होनी चाहिए।  इस प्रकार के सूचकांक के माध्यम से किसी देष के विकास नीति  के बारे में यह भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है कि क्या यह सही दिशा में है, जिससे कि लोगों का कल्याण हो पा रहा है अथवा यह सिर्फ आर्थिक वृद्धि को ही बता रहा है। उसके माध्यम से इस बात की भी तुलना की जा सकती है कि किस प्रकार से दो देश एक ही प्रकार के प्रति व्यक्ति आय रखते हुए भी मानव विकास के क्षेत्र में भिन्न भिन्न मान रखते है। इससे उसमें किसी प्रकार के आवष्यक बदलाव के बारे में दिशा निर्देश मिल जाता है।

                     मानव विकास सूचकांक का निर्माण इसीलिए किया गया जिससें कि किसी भी देष के विकास के आधार उसकी क्षमता से ही मापा जाये, न कि आर्थिक विकास की दर से, जैसा कि एक लम्बे समय तक किया जाता रहा है। यदि किसी भी  मानव विकास सूचकांक का उपयोग किसी भी  देष के राष्ट्रीय नीति नीति  के औचित्य पर भी प्रश्न खड़ा कर सकता है। वास्तव में मानव विकास सूचकांक मानव विकास के महत्वपूर्ण क्षेत्र में प्राप्त औसत उपलब्धि का एक प्रकार से सार संक्षेप है। इसमें लम्बी अवधि तक स्वस्थ जीवन , व्यक्ति द्वारा रखी जाने वाली जानकारी  एवं एक सम्म्मानित मानक जीवन स्तर लिये जाते हैं।

           विकास के सन्दर्भ में उपर दिये गये सिद्धान्त के अतिरिक्त भी कई अन्य विकास सिद्धान्त दिये गये। किन्तु अध्याय की सीमा के कारण उनके बारे में चर्चा नही की जा रही है।

विकास एवं पत्रकारिता Development and journalism

       ऊपर जितने भी प्रकार के विकास सिद्धान्तों की चर्चा की गयी है, इन सबमें  संचार माध्यमों को विकास के एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवयव के रूप  में स्वीकार किया गया। विकास प्रक्रिया के अन्तर्गत संचार के साधनों का निर्माण, उसका विस्तार करना तथा विकास कार्य में उनका उपयोग करना बहुत ही महत्वपूर्ण पहलु रहे है। संचार के साधनों के माध्यम से विकास के वातावरण को तैयार करने एवं  लोगों को सूचित तथा बदलाव के लिए  प्रेरित करने में उपयोग किये जाने की बात कही गयी थी। सभी संचार वैज्ञानिकों ने विकास में मीडिया की भूमिका को स्वीकार करते हुए विकास संचार एवं विकास पत्रकारिता के महत्व की चर्चा की है।

विकास पत्रकारिता एवं जनसंचार नीति Development and mass communication theory

           विकास पत्रकारिता के महत्व  हर प्रकार से बना हुआ है। किन्तु वर्तमान मं जनमाध्यमों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। रेडियो टीवी, समाचारपत्रों की संख्या पहले की तुलना में अब काफी अधिक हो गयी है। किन्तु विकास संदेश व समाचार  देने के लिए वर्तमान में किसी प्रकार का कोई अस्पष्ट नीति  नही बन सकी है । देश में समय समय पर बनी विभिन्न मीडिया समितिया ने संचार माध्यमों के उपयोग के सम्बन्ध में अपने अपने विचार दियें। इसमें 1964 में एके चन्दा समिति , 1982 में पीसी जोषी समिति तथा प्रथम एवं द्वितीय प्रेस आयोग मुख्य है। किन्तु इन सबके बावजूद भारत में जनमाध्यमों के उपयोग हेतुं कभी भी कोई स्पष्ट नीति नही बन सकी है।

         विकास में जनसंचार माध्यमों की भूमिका के सन्दर्भ में किसी भी प्रकार की नीति न बन पाने के कारण  से आज  भी विकास पत्रकारिता एक भटकाव की स्थिति में ही है। निजी क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या मे बहुत बड़ी संख्या में विविध चैनल विकास की प्रक्रिया में प्रभावी भूमिका नही निभा रहे है।

विकास पत्रकारिता के असफलता के कारण

–  हमारे देशमें विकास पत्रकारिता बहुत सफल रूप  में नही रही है । इसके असफलता के कई कारण हैं। इन सब कारणों को मिला जुला प्रभाव यह हुआ कि विकास पत्रकारिता के सही प्रकार से कार्य नही कर सकी है। यहाॅ पर कुछ प्रमुख कारणों की चर्चा की जा रही है।  इस प्रकार की पत्रकारिता को एक ग्लैमरस एवं आकर्षक पत्रकारिता के रूप  में नही देखा जाता है। इस कारण से इसके प्रति पत्रकारों का कभी भी बहुत उत्सुकता नही बन सकी है। वे इसे सरकारी कार्यो के प्रचार के रूप  में देखते रहे हैं। आरम्भ से ही इस प्रकार के विकास कार्यो के समाचार देने प्रति यह धारणा बन गयी कि इससे सरकार का राजनीति  प्रचार होता है। इसलिए वे इसके बारे में समाचार देने के प्रति एक नकारात्मक दृष्टि अपना लिए। प्राइवेट मीडिया इस प्रकार के कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देने के दायित्व को सिर्फ सरकार का दायित्व मान बैठी।

          प्रायः विकास कार्यक्रमों के बारे में विज्ञापन दिया जाते रहे है। इस कारण से जनमाध्यमों एवं रिपोर्टरो में एक आम धारणा यह  बन गयी है कि किसी भी प्रकार के कार्यक्रमों को तभी दिया जाना चाहिए, जब वह विज्ञापन के रूप  में उपलब्ध हो। सरकार के लिए विकास कार्यक्रमों के बारे में लगातार विज्ञापन दे पाना संभव नही है।

          लोगों के बीच विकास कार्यक्रम की लगातार चर्चा करते रहने की आ सकता होती है। जब भी कोई विकास कार्यक्रम आरम्भ किया जाता है तो फिर सिर्फ एक बार चर्चा कर दिये जाने से ही उसका लोगों के बीच में प्रचार नही हो पाता है। उसे बार बार बतलाने की आवष्यकता होती है। किन्तु जनमाध्यमों में ऐसा किया जाना संभव नही हो पाता है।  वे इसे नीरस विषय के रूप में देखते रहे है। इस कारण से उसके कवरेज में रूचि नही लेते हैं। 

        विकास पत्रकारिता में काफी समाचार घटना न हो करके प्रक्रिया आधारित होते है। इसमें किसी प्रकार के समाचार को तैयार करने के लिए काफी षोध की आवष्यकता होती है, जिसमें समय एवं मेहनत करने की  जरूरत रहती है। पत्रकार विभिन्न कारणों से इस प्रकार के मेहनत के लिए सामान्यतौर पर तैयार नही हो पाते है। विकास पत्रकारिता को बढा़वा देने में सरकारी एजेसियों का भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है। एक शोध पूर्ण स्टोरी तैयार करने में उनके द्वारा उपलब्ध कराये गये विविध प्रकार की जानकारी की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह पाया गया है कि किसी भी विकास कार्यो से जुड़े सरकारी अधिकारी इस प्रकार के जानकारी को एक व्यवस्थित ढंग से भागीदारी करने के लिए तैयार नही हो पाते है।

    एक लम्बे समय समय तक आम जनमाध्यम के रूप में सिर्फ रेडियो एवं समाचारपत्र रहे थें । रेडियो सरकारी नियंत्रण में रहा एवं समाचारपत्रो की सीमित पहुॅच के कारण से ये स्वतंत्रता के बाद बहुत दिनों तक ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी भूमिका निभाने में सफल नही रहे। देश की अशिक्षित जनता के समाचारपत्रों की भूमिका बहुत प्रभावी नही हो सकी। ग्रामीण क्षेत्रों में समाचार माध्यमों की पहुॅच भी काफी सीमित ढंग की थी। इसलिए ग्रामीण विकास समाचारो की काफी उपेक्षा होती रही।

विकास पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति –

यदि भारतीय जनमाध्यमों के परिप्रेक्ष्य में विकास पत्रकारिता की बात की जाये तो वर्तमान स्थिति बहुत संतोषजनक नही है। सरकार के विकास कार्यक्रमों के बारे में इन माध्यमों में नियमित समाचारों का सर्वथा अभाव सा दिखता है। जितनी बड़ी संख्या में विविध प्रकार के विकास कार्यक्रम समाज में चलाये जा रहे हैं , उसकी तुलना में समाचारपत्रों मे इन कार्यक्रमों की चर्चा काफी कम की जाती है। समाचारपत्रों में सरकार द्वारा चलाये जा रहे विकास कार्यकमों के बारे में किसी प्रकार का कोई नियमित कालम नही दिये जाते हैं। सामान्यतया विकास कार्यक्रमों की सर्वाधिक चर्चा उस समय होती है जब उसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी की षिकायत होती है।

हिन्दूस्तान टाइम्स , इंडियन एक्सप्रेस जैसे कई अंग्रेजी समाचारपत्रों वर्शो पूर्व विकास पत्रकारिता के अन्तर्गत काफी समाचार दिये जाते रहे है। इसी प्रकार, हिन्दी के समाचारपत्रों ने भी  प्रयास किये। सत्तर के दर्शक में विकासषील देशोंके बीच विकास समाचारों के आदान प्रदान के लिए न्यूजपूल का गठन किया गया था। किन्तु बाद के दौर में  इस प्रकार की रिपोर्टिंग को विस्तारित करने एवं नियमित ढंग से देने के बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य ,व्यापार आदि विषयों पर बाजारोन्मुखी ढंग से विविध प्रकार से सामग्री दी जाने लगी जिसे कि व्यवसायिक पत्रकारिता का एक अंग कहा जा सकता है।

रेडियो – रेडियो माध्यम आरम्भ से ही विकास संचार एवं विकास पत्रकारिता में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। कृषि ग्रामीण विकास, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में रेडियो की भूमिका काफी सराहनीय रही है।  किन्तु समय के साथ इसमें उस स्तर तक बढ़ोत्तरी नही हुई जो कि उम्मीद थी। शहरी क्षेत्रों में  आरम्भ किये गये एफएम चैनल मुख्य तौर पर मनोरंजन के क्षेत्र में ही कार्य कर रहे है। निजी क्षेत्र में होने के कारण ये चैनल स्वयं को इस प्रकार की जिम्मेदारी का एहसास नही करते हैं। इसका परिणाम यह है कि शहरी क्षेत्रों में विकास से सम्बन्धित संभावित संचार के लिए पारम्परिक रेडियो माध्यमों पर ही रहना पड़ता है।

वर्तमान में सामुदायिक रेडियो विविध समुदायों के विकास को ध्यान में रख करके आरम्भ किये जा रहे हैं। किन्तु इसमें अपेक्षित विस्तार नही हो सका है। दूसरी तरफ, आर्थिक एवं अन्य प्रकार के संसाधनों के अभाव है। इसी कारण इसमें अपेक्षित सफलता नही मिल पा रही है।

निजी  टीवी चैनलों की भूमिका मनोरंजन एवं व्यापार तक ही सीमित है। इन पर कोई भी इस प्रकार के कार्यक्रम नही प्रसारित होते हैं जिससे कि विकास पत्रकारिता को बढ़ावा मिले ।  निजी चैनलों के कार्यक्रम बहुत ही व्यवसायिक ढंग से प्रसारित किये जाते है और उस पर मनोरंजन के ही समाचारों का मुख्यतौर से प्रसारण किया जाता है। सरकार नियंत्रित दूरदर्षन पर विकास सम्बन्धी विशयों पर चर्चा की जाती रही है किन्तु इसका प्रसारण का क्षेत्र पूर्व की तुलना में अब काफी कम होता जा रहा है।, 

सूचना संचार तकनीक एवं विकास पत्रकारिता      

       विकास हेतु सूचना एवं संचार तकनीक के उपयोग का आशय विकास के आर्थिक सामाजिक एवं अन्य विविध क्षेत्रों में इसके उपयोग किये जाने से है।  वर्तमान में सूचना एवं तकनीक की क्रान्ति ने पूरी दुनिया में एक बदलाव ले आया है। यह आर्थिक विकास का एक बहुत ही महत्वपूर्ण आधार है। जो देश सूचना एवं तकनीक के क्षेत्र में आगे हैं, वे विकास के भी अन्य क्षेत्रों में आगे है। इसकी मदद से विकास संचार एवं विकास पत्रकारिता को आगे ले जाने में काफी मदद मिलने लगी है। सरकार द्वारा चलाये जा रहे विकास कार्यो के बारे में लोगों को आधुनिक सूचनातंत्र का इस्तेमाल विविध प्रकार से जानकारी दी जा सकती है। सरकारी एंजेंसियो द्वारा मोबाइल पर विविध प्रकार की सूचना दिया जाना इसका एक उदाहरण है।

      वर्तमान में आम आदमी की सूचना तकनीक क्षेत्र में काफी अधिक पहुॅंच बनी है, और इसमें लगातार बढ़ोत्तरी भी हो रही है। इस कारण से आम आदमी की विकास संचार में भागीदारी बढ़ने की भी उम्मीद की जा सकती है। इसमें मोबाइल, सोशल मीडिया , सिटीजन पत्रकारिता का उदय काफी महत्वपूर्ण है।   

सोशल मीडिया एवं विकास पत्रकारिता

       सोशल मीडिया के रूप  में एक बहुत ही प्रभावी माध्यम आम लोगों हेतु उपलब्ध है, जिसके द्वारा वे आपस में विविध प्रकार से सम्पर्क एवं बातचीत करते हैं। सोशल मीडिया में चर्चा किये जाने वाली विशय तो काफी अधिक  होते हैं। किन्तु इसमें विकास सम्बन्धी समाचार  भी दिये गये होते हैं। वे व्यक्ति जो कि विकास समाचारों में रूचि रखते हैं, वे इन विषयों पर विविध प्रकार से सामग्री देते हैं।

          सोषल मीडिया पर विविध प्रकार की विकास एजेंसिया भी अपने अपने  एकाउंट खोल करके उस पर अपने अपने ढंग से काफी जानकारी उपलब्ध करा रही हैं। वे आम पाठक से  कई स्तरों पर संवाद भी करने लगी है। इस मीडिया पर लोग अपने कमेंन्ट भी दे रहे हैं। कई  सोषल नेटवर्किंग साइट ऐसी भी हैं जो कि शिक्षा , स्वास्थ्य , पर्यावरण आदि विषयों पर काफी जानकारी देती हैं और इस प्रकार से वे विकास संचार के क्षेत्र में योगदान कर रही हैं। सोषल मीडिया में विकास संचार के अन्तर्गत उपलब्ध करायी जा रही सामग्री काफी लक्षित वर्ग को भी दी जा सकती है। सरकार के विविध मंत्रालय भी सोशल साइट पर अपने विकास कार्यो के बारे में सभी प्रकार की जानकारियां दे रहे हैं।  सोशल मीडिया विकास एवं विकास पत्रकारिता में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। इसके बारे में काफी शोध करने की आवश्यकता है जिससे कि इसका पूरा उपयोग किया जा सके। 

विकास एवं सिटीजन पत्रकारिता

         नये तकनीको की उपलब्धता के कारण  सिटीजन पत्रकारिता भी विविध प्रकार से की जाने लगी है। सभी पारम्परिक माध्यम सिटीजन पत्रकारिता के लिए एक प्लेटफार्म उपलब्ध कराने लगे हैं। सोषल मीडिया भी सिटीजन पत्रकारिता एवं विकास संचार के लिए एक महत्वपूर्ण साधन के रूप  में विकसित हुई है। इस पत्रकारिता के अन्तर्गत लोग अपने ढंग से विविध प्रकार की सूचनाओं को देते हैं। इसमें विकास सम्बन्धी कार्यक्रम एवं समस्याओं को भी काफी संख्या में दिया जाने लगा है। पारम्परिक माध्यमों के अन्तर्गत प्रिंट एवं टीवी माध्यमों  में सिटीजन पत्रकारिता के अन्तर्गत उपलब्ध कराये गये स्थान में तो आम लोग विकास सम्बन्धी मुद्दों की काफी अधिक चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में देशके सभी समाचारपत्रों द्वारा सिटीजन पत्रकारिता के माध्यम से पाठकों को जोड़ने की योजना बनायी गयी

ब्लाग – सिटीजन पत्रकारिता के अन्तर्गत ब्लाग इसका एक बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है। ब्लाग के माध्यम से विविध प्रकार के विकास कार्यक्रमों  के बारे में  नियमित रूप  सें जानकारी दी जा सकती है।  विभिन्न विभाग एवं विकास एजेसियों द्वारा अपने अपने ब्लाग बना करके उस पर विकास कार्यो के बारे में लोगों से फीडबैक भी प्राप्त किये जा सकते है। 

        किन्तु यहाॅ पर यह ध्यान देने की बात है कि न्यू मीडिया का उपयोग उस वर्ग के लोग ही कर सकते हैं, जिन्हे कि इस तकनीक का ज्ञान हो। इसलिए भारत जैसे देश में इस प्रकार के तकनीक की उपयोगिता एक सीमित दायरे में ही किया जा सकता है।

विकास के लिए जरूरी शर्तें Condition for Development communication

             किसी भी देश के विकास के लिए यह आवश्यक है कि सभी प्रकार की स्थितियाॅ उनकें अनुकूल हो। उदाहरण के लिए उसके पास आधारभूत साधन होने चाहिए जिससे कि उसका विकास के लिए इस्तेमाल किया जा सके। यहाॅ पर आवश्यक शर्तोंके बारे में चर्चा की गयी है। 

स्थायी राजनीतिक तंत्र – एक स्थिर राजनीतिक सिस्टम किसी भी देश , समाज के विकास के लिए जरूरी है। इसी प्रकार उसका अपना एक भली भाॅंति प्रभावी संविधान भी होना चाहिए। इसके अभाव में कोई भी देश सामाजिक एवं आर्थिक विकास की दिशा में आगे नही बढ़ सकता है।

स्थायी प्रशासनिक तंत्र – जब तक कोई समाज एक सुव्यवस्थित लोक प्रशासन नही रखता है, तब तक वह समाज में सुधार हेतु कोई विकास का कार्यक्रम आगे नही ले जा सकता है। इस प्रकार के सिस्टम विविध प्रकार के नियम कानून के पालने कराने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण आधार होते हैं।

एक आधारभूत सांस्कृतिक तंत्र – कोई भी विकास कार्य उन लोगों के बीच नही हो सकता है, जो कि किसी कार्य वश एकाएक एक जगह पर एकत्र हो गये रहते हैं। समाज में रहने वालों के बीच जुड़ाव का जबरदस्त आधार होना चाहिए, जिसके माध्यम से वे आपस में जुड़ करके रह सकते हैं। भाषा, संस्कृति आदि इस प्रकार के आधार हो सकते है। विघटनकारी या बिखरे हुए समाज में विविध प्रकार की इकाइयाॅं आपस में लगातार संघर्ष ही करती रहती हैं। इस कारण से वे समाज में विकास की जगह रूकावट ही डालते हैं। 

योजना का तंत्र  विकास– किसी ठोस कार्यक्रम के लिए एक सही प्रकार की कार्य योजना भी आवश्यक है। विकास के अन्तर्गत किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस प्रकार की योजनाएं एवं मषीनरी सिस्टम के अभाव में विकास कार्य को सफलतापूर्वक क्रियान्वयन संभव नही है।

 जनभागीदारी – किसी भी प्रकार की विकास की प्रक्रिया लोगों की भागीदारी के बगैर संभव ही नही है। विकास को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि लोग इसमें पूरी तरह से भागीदारी करें।  

         वर्तमान में लोग समाज में अपनी भूमिका के प्रति काफी सजग हो करके रहते हैं। इसलिए किसी भी प्रशासन द्वारा उन्हे नकार करके आगे बढ़ने पर वे अपने लक्ष्य में कभी भी सफल नही हो सकते हैं। कोई भी लोकतंत्र अपने प्रशासन के माध्यम से जनता से एक सही प्रकार से संम्पर्क किय बगैर आगे नही बढ़ सकता है।

प्रभावी विकास पत्रकारिता Effective Development communication

     विकास पत्रकारिता को विस्तारित करने एवं इसे एक प्रभावी रूप  देने के लिए कई तरीके अपनाये जा सकते हैं। इसमें निम्न उपाय मुख्य है जिसे कि अपनाये जा सकते हैं।

-विकास पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा एक स्पश्ट मीडिया नीति बनायी जानी चाहिए                                                                  ।

-विकास कार्यो  में मीडिया को एक अभिन्न अंग बना करके उपयोग किया जाना चाहिए।

-निजी टीवी एवं रेडियो चैनलों पर विकास पत्रकारिता करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

-विभिन्न जनमाध्यमों पर विकास समाचार को रोचक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक शोध एवं तैयार की जानी चाहिए ।   

-सरकार के विभिन्न  इकाईयों द्वारा विकास कार्यो के बारे में नियमिततौर पर सूचना एवं अन्य प्रकार की सम्बन्धित सामग्री मीडिया को दी जानी चाहिए।  

-नये जनसंचार माध्यम एवं तकनीक का बेहतर ढंग से इस्तेमाल किये  जाने के बारे में आवश्यक तैयारी की जानी चाहिए।

– सभी प्रकार के विकास कार्यो के बारे में जानकारी देने के लिए एक वेबसाइट तैयार किया जाना चाहिए जिससे कि जनमाध्यमों को उससे किसी भी समय  जानकारी उपलब्ध की जा सके।

विकास पत्रकारिता की सीमा

           विकास पत्रकारिता स्वयं अपने आपमें न तो कोई विकास का साधन  है और न ही वह यह अपने आप में कोई स्वतत्र कारण  है। । यह सिर्फ किसी भी प्रकार के सिस्टम को सही एवं प्रभावी रूप  देने में ही सहायक होता है। एक प्रभावी संचार के माध्यम से लोगों के नजरिये में बदलाव ला सकता है। यह विकास के प्रक्रिया या सिस्टम में एक सहायक की भूमिका निभा सकता है, किन्तु स्वयं सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव नही ला सकता है। विकास प्रक्रिया में शामिल विविध तत्वों में यह भी एक तत्व के रूप  में ही है।  इस रूप  में ही इसका अधिकतम प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है। विकास के सन्दर्भ में पीछे वर्णित विभिन्न प्रकार के शर्तें, स्थितियों का होना आवश्यक है।

विकास पत्रकारिता का बदलता परिदृश्य

           विकास संचार एवं विकास पत्रकारिता के स्वरूप  में लगातार बदलाव भी होते रहे हैं। जिस प्रकार से विकास एवं विकास सिद्धान्त की अवधारणा में लगातार परिवर्तन होते रहे है , उसी प्रकार से संचार एवं संचार के तौर तरीके में भी बदलाव होते रहे। नये संचार के तकनीकों के कारण भी विकास पत्रकारिता के स्वरूप  में काफी बदलाव आया है। आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक आदि स्थितियों में बदलाव से तदनुसार विकास  के विषय वस्तु में परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता होती रही है।

       एक लम्बे समय तक रेडियो, टीवी, प्रिंट माध्यम विकास पत्रकारिता के मुख्य साधन रहे हैं। किन्तु अब वेब माध्यम ने अनेक प्रकार के ऐसे साधन उपलब्ध करा दिये हैं जिससे कि आम लोगों की संचार क्षमता काफी बढ़ गयी है। इस कारण से विकास पत्रकारिता में आम लोगों की भी भागीदारी काफी बढ़ रही है। अन्य प्रकार के विषयों के साथ अब आम लोग विकास के विविध मुद्दे पर भी काफी चर्चा कर रहे हैं। उसके बारे मे किसी प्रकार की क्रिया कलाप पर वे अपने कमेन्ट भी कर रहे है। आने वाले दिनों में यह बदलाव बना रहेगा।  

error: Content is protected !!