December 22, 2024

This article discusses important aspects of contempt of court

क्या है मान हानि कानून

Contempt of court न्यायालय की अवमानना
Contempt of court


भारत में प्रेस के सन्दर्भ बनाये गये विविध प्रकार के कानून बनाये गये है। प्रेस कानून के अन्तर्गत न्यायालय अवमानना एक बहुत ही महत्वपूर्ण कानून है। भारत में मानहानि कानून के बावजूद न्यायालय की अवमानना कानून बनाया गया है। कानून की अवमानना का मतलब कानून की अदालत या उसके फैसले को नही मानना होता है। इसके अन्तर्गत न्यायालय अवमानना की स्थिति तब होती है जब किसी व्यक्ति, संगठन या संस्था द्वारा न्यायालय के फैसला को न मानने या फिर किसी प्रकार से न्यायालय की गरिमा को चोट पहुॅंचाने का कार्य किया जाता है। न्यायालय की अवमानना की मान्यता और अवमानना के लिए दंडित करना भारत जैसे राष्ट्र के लिए बहुत आवश्यक है। भारत में कानून के शासन की अवधारणा पर आधारित है। इसके लिए कानून की सर्वोच्चता की आवश्यकता है। किसी भी व्यक्ति के लिए न्यायपालिका को आशा उम्मीद और न्याय का अंतिम स्थान माना जाता है। इसे अपना कार्य सुचारू रूप से करने के लिए यह आवश्यक है कि यह किसी प्रकार के बाधा एवं दबाव से सर्वथा मुक्त रहे। किसी भी प्रकार की ऐसा कार्य या वह अभिव्यक्ति जिससे कि न्यायालय की सामान्य न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन होता है उस स्थिति में वह व्यक्ति न्यायालय की अवमानना करता है।


किसी भी राष्ट्र के नागरिकों के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1995) के अनुसार, सजा का उद्देश्य उपचारात्मक और सुधारात्मक दोनों है और ये जबरदस्ती एक व्यक्तिगत शिकायतकर्ता को उसके उपाय को लागू करने में सहायता करने के लिए होती है और दंड देने के लिए सार्वजनिक नीति का एक तत्व भी है। https://www.scobserver.in/journal/the-modi-defamation-case-against-rahul-gandhi-the-story-so-far/


अवमानना कानून का महत्व – हमारे देश में मानहानि कानून पहले से ही बना हुआ है। इसके बावजूद न्यायालय अवमानना कानून का निर्माण किया गया है तो इसके पीछे कई कारण दिये जा सकते है। प्रथम कारण तो यही है कि सार्वजनिक न्याय – प्रषासन प्रषासन में किसी प्रकार के हस्तक्षेप से जनता की रक्षा की जानी चाहिए। न्यायपालिका को स्वतंत्र ढंग से निर्द्वंद हो करके कार्य करने के लिए यह आवष्यक है कि वह किसी भी प्रकार के दबाव एवं पूर्वाग्रह से मुक्त रहे। विविध प्रकार के प्रेस कानूनों की तरह से मानहानि कानून की प्र्रक्रिया भी काफी देर तक चलती है। ऐसी स्थिति में मानहानि कानून अदालत के अवमानना के लिए उपयोग में लाने पर उसका प्रभावी असर होने में संषय ही दिखता है। अतः न्यायालय अवमानना कानून के अन्तर्गत इसके खिलाफ शीघ्रता से कार्रवाई की उम्मीद की जाती है। न्यायालय की अवमानना कानून से कानून के शासन को समाज में बनाये रखने में भी मदद मिलती है। इस प्रकार का कानून न्यायालय को स्वतंत्र ढंग से कार्य करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार के कानून के माध्यम से किसी व्यक्ति को कानून के साथ किसी भी प्रकार के खिलवाड़ करने की किसी भी मंशा को समाप्त करता है।


न्यायालय की अवमानना के प्रकार Kinds of Contempt of court


अदालतों की अवमानना अधिनियम, 1971 (इसके बाद 1971 अधिनियम) अदालत की अवमानना दो प्रकार से परिभाषित किया गया है। इसे सिविल या नागरिक अवमानना एवं फौजदारी अवमानना के रूप में जानते हैं।


सिविल या नागरिक अवमानना Civil Contempt of court- अब नागरिक अवमानना कानून की धारा 2 (बी) के अनुसार न्यायालय के किसी प्रकार के न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन करना नागरिक न्यायालय अवमानना में शामिल है। इसके बारे में कानून की धारा 2 (बी) में बातें स्पष्ट की गयी है। इसके अनुसार जब किसी न्यायालय अवमानना तब होता है जब न्यायालय के आदेश निर्णय या डिग्री, समादेश की किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझ कर उल्लंघन किया जाता है । जब न्यायालय को दिए गए किसी वचन का जानबूझ कर उल्लंघन किया जाता है तो फिर वह भी उसे न्यायालय अवमानना कहते है। इसी प्रकार से न्यायालय में दिये गये किसी अन्डरटेकिंग को तो तोड़ने पर भी उसे न्यायालय का अवमानना माना जाता है। इस प्रकार के सभी अवमानना सिविल अवमानना के अन्तर्गत आते हैं।


नागरिक अवमानना की परिभाषा सामान्य विवेक के व्यक्ति के लिए काफी सरल है। यह निष्कर्ष निकालने के लिए कि कौन सी कार्रवाई नागरिक अवमानना करेगी। नागरिक अवमानना का निर्धारण बिल्कुल वस्तुनिष्ठ है। इसमें किसी प्रकार के मतभेद या विष्लेषण करने की आवष्यकता नही होती है। यदि कोई न्यायिक आदेश, निर्णय, आदि है और यदि ऐसे आदेश निर्णय की जानबूझकर अवज्ञा की गई है तो यह अवज्ञा दीवानी न्यायालय अवमानना के अन्तर्गत आता है। किन्तु कई बार ऐसी स्थितियॉं आती है जिसमें सिविल अवमानना की स्थिति यदि स्पष्ट नही रहती है तो फिर को न्यायालय ही स्पष्ट करता है।


नागरिक अवमानना में बचाव – Protection in Contempt of court किन्तु नागरिक अवमानना में एक बचाव का प्रावधान भी है। इस कानून की धारा तीन के अनुसार इसमें यह प्रावधान किया गया है कि व्यक्ति द्वारा यदि कोई आदेश का उल्लंघन जानबूझ करके नही किया गया है तो फिर उस स्थिति में न्यायालय अवमानना का दोषी नही ठहराया जा सकता है। इसमें उसे यह साबित करना रहता है कि सम्बद्ध व्यक्ति को न्यायालय के आदेश, निर्णय, डिग्री, समादेश आदि की जानकारी नही थी। ऐसी स्थिति में सम्बद्ध व्यक्ति द्वारा जानबूझ कर के अवज्ञा नही मानी जायेगी। किन्तु जब यह सिद्ध हो जाये कि सम्बद्ध व्यक्ति को जानकारी थी तो फिर वह नागरिक अवमानना के आरोप से बच नही सकता है। न्यायालय की अवमानना निगमों, संस्थाओं आदि द्वारा भी किया जा सकता है। इस स्थिति में उससे सम्बन्धित जिम्मेदार व्यक्ति को इसके लिए दोषी माना जाता है।


आपराधिक न्यायालय अवमानना Criminal Contempt of court – इस कानून की धारा 2 (सी) आपराधिक अवमानना परिभाषित करती है। इसके अनुसार किसी भी प्रकार का ऐसे प्रकाशन जो या तो अदालत को बदनाम करती है या उसके अधिकार को कम करती है, या ऐसा प्रकाषन जो कि किसी भी न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप या पूर्वाग्रह करता है, किसी भी तरह से न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप या बाधा डालता है या फिर किसी प्रकार का ऐसा प्रकाशन जो अदालत के अधिकार को बदनाम करता है या किसी न्यायिक कार्यवाही या न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करता है तो फिर वह न्याायालय अवमानना के अन्तर्गत आता है।


यह न्यायाधीश के विवेक पर काफी हद तक निर्भर करता है कि वह यह देखें कि किस प्रकार की अभिव्यक्ति अदालत के अधिकार को बदनाम करती है। भारत में किसी भी कानून ने इसे बहुत स्पष्टतौर पर परिभाषित नही किया गया है। अतः यह बताना कठिन है कि अदालत की अवमानना करना क्या होता है। कई बार सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की आलोचना करने पर भी नागरिकों के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई है।


सामान्यतौर पर कोई भी ऐसी अभिव्यक्ति जो कि न्यायालय की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है, वह न्यायालय के अवमानना के अन्तर्गत आ सकता है। न्यायालय के सन्दर्भ में किसी प्रकार की कोई अभिव्यक्ति करते समय यदि ध्यान न दिया जाये तो फिर कई प्रकार की ऐसी बातें हैं जो कि न्यायालय अवमानना के अन्तर्गत आ सकती है। किसी भी व्यक्ति द्वारा अभिव्यक्ति की गयी वे सभी बातें न्यायालय की अवमानना के अन्तर्गत मानी जायगी जो कि किसी मुकदमें की सुनावाई की प्रक्रिया के दौरान –

  • किसी गवाह पर अनुचित दबाव डालता है।
  • पुलिस की अदालत सम्बन्धी कार्यवाही में बाधा उत्पन्न है।
  • न्यायाधीष पर उसकी न्यायिक सम्बन्धी कार्यवाही पर किसी प्रकार का आक्षेप लगाता है।
  • किसी भी पक्ष के वकील पर अनुचित दबाव डालना ।
  • वादी अथवा प्रतिवादी पर किसी प्रकार का दबाव डालता है ।
  • न्यायालय के कार्य या प्रक्रिया पर किसी प्रकार का कोई आषंका जाहिर करता है।
  • न्यायालय की गरिमा को किसी प्रकार से कम करता हो। इस प्रकार से यह स्पष्ट है कि ऐसे सभी प्रकार के वे अभिव्यक्ति जो कि किसी न किसी प्रकार से न्याय दिलाने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं, वे सब न्यायालय की अवमानना के अन्तर्गत आते हैं। इस प्रकार से धारा 10 में यह भी प्रावधान किया गया है कि उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय को अपने अधीन किसी न्यायालय द्वारा किसी किसी प्रकार से अवमानना करने के लिए उसी प्रकार से कार्यवाही कर सकता है जिस प्रकार से वह अपने अवमानना के लिए वह अन्य के खिलाफ कार्यकरने का कानूनी अधिकार के अन्तर्गत करता है। यदि निचली अदालत का अवमान ऐसे अपराध के कारण हुआ है जो कि भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत दंडनीय है तो फिर उच्च् न्यायालय अवमानना कानून का अपवाद Exceptions of Contempt of court
    • कानून की धारा सात के अन्तर्गत बन्द अदालत या न्यायाधीश के चैम्बर में की गयी कार्यवाही की रिपोर्ट की सही रिपोर्टिंग अदालत की अवमानना नही मानी जायेगी। किन्तु इसमें निम्न बातें अपवाद में है और इसका उल्लंघन होने पर न्यायालय की अवमानना माना जायेगा।
      1-जब वर्तमान में लागू किसी अन्य लागू कानून का उल्लंघन हो करके प्रकाशन होता है।
      2-कई बार न्यायाधीष द्वारा अदालत कार्यवाही के प्रकाषन पर रोक लगा दिया गया रहता है, ऐसी स्थिति में इसका प्रकाशन न्यायालय की अवमानना माना जायेगा।
      3-जब न्यायाधीश द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था या फिर राज्य सुरक्षा के मद्देनजर किसी बन्द चैम्बर में या फिर कैमरे के समक्ष सुनवाई की जा रही है और उसके प्रकाषन पर रोक लगी हुई है, ऐसी स्थिति में उसके बारे में किसी प्रकार का प्रकाषन न्यायालय की अवमानना माना जायेगा।
      4-जहॉं पर सूचना किसी प्रकार के गोपनीय प्रक्रिया, आविष्कार या शोध से सम्बन्धित है और या न्यायालय ने किसी जो सुनवाई की जा रही है, उस प्रक्रिया का एक भाग है।
      किन्तु जब इस प्रकार का कोई रोक नही होता है। अर्थात् ऊपर वर्णित प्रावधानों को लागू नही किया गया रहता है, उस समय न्यायालय प्रक्रिया के समाचारों को दिया जा सकता है। निचली अदालतों के पीठासीन अधिकारियों के बारे में उनसे उच्च अदालत द्वारा किये गये किसी प्रकार के टिप्पणी करना किसी प्रकार की अवमानना नही माना जाता है। किन्तु इस प्रकार की बातें सद्भाव के साथ कही गयी होनी चाहिए। इसका उद्देष्य न्याय प्रषासन को सुधारना होना चाहिए । वह न्याय प्रषासन में हस्तक्षेप अथवा कलंकित न करता हो।
      सजा – न्यायालय अवमानना के दोषी होने पर सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अन्तर्गत दोषी पाये जाने पर व्यक्ति को अधिकतम छः माह तक की सजा या फिर अधिकतम दो हजार रूपये जुर्माना या फिर दोनों प्रकार की सजा दी जा सकती है। सिविल अवमानना के मामले में सजा
      अपील – न्यायालय अवमानना कानून में अवमान के लिए सजा पाये व्यक्ति को अपील करने का भी अधिकार है। इसके लिए दंड देने वाले अदालत की अनुमति आवष्यक है।
      न्यायालय अवमानना कानून का उल्लंघन – मानहानि कानून का उल्लंघन की घटनाएं होती रहती है। इसके बारे में समाचारपत्रों में समाचार भी प्रकाषित किये जाते है। कई बार इस प्रकार के मामले काफी विवादपूर्ण हो जाते हैं। नागरिक न्यायालय अवज्ञा के मामले अधिक होते हैं। इसमें से कुछ घटनाएं एक नजीर के तौर पर भी प्रस्तुत किये जाते हैं।
      समय समय पर ऐसे निर्णय दिये जाते हैं, जिससे यह ज्ञात होता है कि व्यावहारिक तौर पर किस प्रकार के मामले को न्यायालय अवमानना के अन्तर्गत माना जायेगा और किसे नही माना जायेगा। इससे न्यायालय के आदेष के न मानने के सन्दर्भ में उसे कब न्यायालय की अवमानना माना जायेगा, यह भी स्पष्ट होता है। उदाहरण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए अपने निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए राजनीतिक दलों के प्रमुखों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग करने वाली याचिका आज खारिज कर दी। जस्टिस बीआर गवई और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग इस मामचसले में सक्षम प्राधिकारी है। सुप्रीम कोर्ट एक वकील ब्रजेश सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल और कई पार्टी नेताओं के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि इन पार्टियों ने अपने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास की घोषणा करने के शीर्ष अदालत के अगस्त 2021 के फैसले का पालन नहीं किया। अगस्त, 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइटों और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अपने उम्मीदवारों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण और उन्हें चुनने के कारणों के साथ-साथ बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट न देने का विवरण अपलोड करने का निर्देश दिया था। इसमें कहा गया था कि ये विवरण उम्मीदवार के चयन के अड़तालीस घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख से कम से कम दो सप्ताह पहले, जो भी पहले हो, प्रकाशित किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि विवरण फेसबुक और ट्विटर सहित राजनीतिक दलों के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफार्मों और एक स्थानीय भाषा और एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में भी प्रकाशित किया जाना चाहिए। सितंबर 2018 में, पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को अपने आपराधिक इतिहास की घोषणा करनी होगी और उम्मीदवारों के इतिहास के बारे में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार करने का आह्वान किया था।
      अवमानना कानून में की धारा तीन में इस बात का प्रावधान किया गया है कि किसी प्रकार का इन्नोसेन्ट अर्थात् निर्दोष ढंग से प्रकाषन एवं वितरण को न्यायालय अवमानना के अन्तर्गत नही माना जायेगा। इसमें यह कहा गया है कि कोई ऐसी सामग्री का वितरण न्यायालय की अवमानना के अन्तर्गत नही माना जायेगा।
      -यदि इस बात के विष्वास करने के पर्याप्त कारण है कि ऐसा करने वाले व्यक्ति को इस बात की जानकारी नही थी कि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
      -न्यायालय अवमानना से सम्बन्धित किसी न्यायालय अवमानना कानून की धारा चार में इस बात को भी कहा गया है कि न्यायालय प्रक्रिया की निष्पक्ष एवं सही रिपोर्टिंग न्यायालय अवमानना के अन्तर्गत नही माना जाता है।
      -इसी प्रकार से धारा पॉच में यह भी कहा गया है कि यदि कोई न्यायालय का फैसला आ चुका है। तो फिर फैसले के गुण दोष के आधार पर की गयी इसकी आलोचना न्यायालय अवमानना के अन्तर्गत नही माना जाता है।

किसी व्यक्ति द्वारा अदालत के समक्ष उसका अवमानना करना एक गंभीर अपराध माना जाता है। इसके अंतर्गत अवमानना करने वाले व्यक्ति को दंड देने की प्रक्रिया का प्रावधान न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 14 में वर्णित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय पर किसी प्रकार का आक्षेप लगाए अथवा न्यायालय को ऐसा महसूस हो कि व्यक्ति द्वारा आक्षेप लगाया गया है, तो उसे स्थिति में व्यक्ति को हिरासत में लिया जा सकता है। इस संदर्भ में फिर आगे आवश्यक प्रक्रिया का भी पालन किया जाता है । और व्यक्ति को अपना जवाब देने का अवसर दिया जाता है । उसके पश्चात ही अदालत न्यायालय जैसा उचित समझे, उसके अनुसार सजा दे सकती अथवा बरी कर सकती है।

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