December 23, 2024

Challenges before Science Reporting विज्ञान रिपोर्टिंग के समक्ष चुनौतियां


पिछले दिनों बाबा धीरेंद्र शास्त्री को लेकर के जनमाध्यमों में काफी चर्चा होती रही है। देश के बड़ी संख्या में जाने माने जाने वाले टीवी चैनल आदि के पत्रकार उनके समक्ष जाकर के उनके कार्य प्रणाली को भी देखें । टीवी के समक्ष जिस रूप में उन्होंने जो दावे प्रस्तुत किया, कम से कम वे चैनल पर उसको ले करके स्पष्ट तौर पर किसी तरीके की कोई पुष्टि नहीं की गई , किंतु उसका खंडन भी नहीं कर सके। दूसरी तरफ, बाबा द्वारा यह पत्रकारों को लगातार चुनौती दी गई कि वे वह सब कुछ दिखा सकते हैं या कर सकते हैं जो कि विज्ञान नहीं मानता है। भारतीय समाज में किसी भी प्रकार के चमत्कार के प्रति लोगों का बहुत ही जबरदस्त आकर्षण एवं आस्था रही है । दरबार में यह तथाकथित विचित्र करामात सोशल मीडिया पर बहुत बड़ी संख्या में दिखाया जाता है। यद्यपि इसको इनकार करने वाले अपने अपने ढंग से तर्क देते हैं। किंतु जो बात सोशल मीडिया पर दिखाई एवं बताई जाती है, बहुत से व्यक्ति उस पर कहीं अधिक विश्वास करते दिख रहे हैं। https://fb.watch/jkpFU5wwvm/


यह भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है कि धीरेन्द्र शास्त्री की तरह ही भारत में धार्मिक रूप में दरबार लगाते हुए और लोगों की रोग आदि संबंधित समस्याओं का निदान करते हुए कई अन्य बाबा सोशल मीडिया पर देखे जा सकते हैं । इन सब लोगों द्वारा भी उसी तरीके से दावेदारी की जाती है। कई जगहों पर तो यह भी कहा जाता है कि उनके इलाज का यह तरीका ईश्वरीय तरीका है और यह पूरी तरह विज्ञान पर आधारित है । https://www.facebook.com/watch?v=3532769983666079 यह विज्ञान संचारकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण चुनौती है कि वह इन सब क्रियाकलापों की दावेदारी की गहराई में जाकर उसकी सत्यता को जाने समझे और फिर उसके बारे में आम लोगों को वास्तविकता बताएं । देश भर के विभिन्न जनमाध्यमो के लिए यह आवश्यक है कि इसके मूल में जो सत्य है उसे सामने ले आए ।

पारंपरिक रूप में जो कुछ भी भारतीय समाज में इलाज के तौर तरीके रहे उसमें पूजा पाठ के अलावा टोना टोटका, भूत प्रेत संबंधी इलाज भी बहुत बड़ी संख्या में माने जाते रहे हैं । पिछली सदी के 70 और 80 के दशक तक तो इन सब क्रिया कलापों का काफी बोल बाला रहा है। इसमें से बहुत से लोगों को गाॅव आदि जगहों इस प्रकार के इलाज के तौर तरीके अवश्य ही याद होगें। जैसे-जैसे भारतीय समाज में विज्ञान तकनीक से संबंधित बातों का प्रचार प्रसार होता गया ,उसी के साथ इन तौर तरीकों एवं विचारों के खिलाफ नये सिरे से लोगों के बीच जागरूकता पैदा की गयी। इसे एक अंधविश्वास के रूप में माना गया । धीरे-धीरे लोग लोग वैज्ञानिक तौर तरीकों को अपनाते गये और इस तरह की बातें एवं क्रियाकलापों का लोप भी होता रहा। देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग अपने शारीरिक एवं मानसिक रोग आदि की समस्याओं के इलाज के संदर्भ में इन तौर-तरीकों से दूर होता गया। किंतु यह पूरी तरीके से समाप्त नहीं हो सका और समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग खास करके जो शिक्षा और आर्थिक रूप से बिछड़े हुए थे , वे सब इन तरीकों को अपनाने और विश्वासों से मुक्त नहीं हो पाया।

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वर्तमान में विभिन्न प्रकार के विज्ञान सम्बन्धी वेबसाइट को भले ही लोग न देखते हो, लेकिन बाबा बागेश्वर धाम एवं इस प्रकार के अन्य साइट परजो कुछ भी दिखाया जाता है, उसको देखने वालों की संख्या लाखों एवं करोड़ों में पहुंच रही है । यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसी के साथ ऐसी बातों को जानने मानने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। सोशल मीडिया पर वर्तमान में भारतीय परम्परा इलाज नुस्खे आदि से जुडे लाखों की संख्या में वीडियो एवं अन्य प्रकार की सामग्री है। इस पर बातों को कहीं बहुत ही जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें से कुछ तौर तरीके तो हमारी परम्परा एवं घरेलु इलाज का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग रहे हैं , किन्तु इसमें बड़ी संख्या में वे भी तौर तरीके हैं जिनके खिलाफ कभी विज्ञान बहुत ही जोरदार ढंग से खंडन करता रहा है। इन सब बातों के अब एक नये सिरे से स्थापित की जा रही है। बहुत ही रोचक तथ्य यह भी है कि इन जगहों पर जो लोग भी आ रहे है, वे इसकी सत्यता एवं लाभ पाने को प्रमाणित एवं पुष्टि भी कर रहे है।

पूर्व में इस प्रकार के इलाज के नाम पर बहुत बड़ी संख्या में लोगों का शोषण होते हुए भी देखा गया है और यही कारण है कि इलाज और समस्या समाधान के इस पद्धति धीरे धीरे न सिर्फ बदनाम हुई, वरन इनमें से अधिकतर तौर-तरीकों को अंधविश्वास आदि के रूप में देखा जाना माने लगा। वहीं इन सबके बावजूद समाज के बड़े वर्ग में इसके प्रति विश्वास एवं श्रद्धा बना रहा।

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विज्ञान और विज्ञान से संबंधित वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी संचार परिषद नामक इकाई का भी गठन किया गया जो कि विज्ञान और तकनीक विभाग के अंतर्गत कार्य करता है। यह इकाई प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप के माध्यम से लोगों के बीच में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए कार्य करती है और इसी के साथ वैज्ञानिक संचार करने के लिए विश्वविद्यालयों में विज्ञान संचार शिक्षण के कार्य को भी बढ़ावा देती है। इसी प्रकार से न जाने कितनी संगठन स दृष्टिकोण विकसित करने के लिए कार्य कर रहे हैं। किंतु सोशल मीडिया पर जिस ढंग से विभिन्न प्रकार के रोगों समस्याओं के इलाज के जो बातें दिखाई सुनाई जा रही है वह लोगों को कहीं अधिक आकर्षित कर रही है । Challenges before Science Reporting

आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा विधियों का हर प्रकार से अपना महत्व तो है, किंतु इससे यदि कुछ लोगों का मोहभंग हो रहा है तो इसके पीछे कोई कारण भी हैं । आधुनिक इलाज के क्रियाकलाप में बुराईयां भी शामिल होती जा रही है। गलत इलाज से ले करके इसमें लोगों को ठगने का भी कार्य किया जा रहा है। इसलिए यह आवश्यक नही है कि इसमें लोगों का समय से संस्था के साथ बहुत ही सटीक इलाज मिल ही जाये। इस प्रकार के इलाज में व्यावसायिकता का इतना जबरदस्त प्रवेश हो गया है कि इलाज के नाम पर अनावश्यक जाॅच एवं ऑपरेशन बहुत ही आम बात हो गयी है। इस क्षेत्र में किसी प्रकार की शिकायत समस्या होने पर कहीं पर कोई भरोसेमन्द सुनवाई भी नही है। फिर इलाज के नाम पर बहुत बड़ी धनराज भी खर्च करनी पड़ती है। कुछ बीमारियों में तो चिकित्सक अपने हाथ भी खड़े कर देते है । फिर व्यक्ति थक हार करके इलाज के लिए उन विधियों एवं पद्धतियों की शरण ले रहे हैं जिनको कि विज्ञान में अंधविश्वास माना जाता है। Challenges before Science Reporting


वर्तमान में सोशल मीडिया पर जीत ढंग से बातें दिखाई जाती हैं ,वह लोगों को बहुत अधिक प्रभावित करती है । यही नहीं कई ऐसे भी उदाहरण सामने दिखाए जाते हैं जिसमें कीआधुनिक पद्धति से इलाज कराने वाले लोग संबंधित अस्पताल से हर प्रकार से थक हार करके इन जगहों पर आए हैं, और अपनी समस्या का समाधान पाएं हैं। इस प्रकार वे लोग जिनके बीमारियों के निदान में बड़े-बड़े चिकित्सालय हाथ खड़ा कर दिए हैं, उनका यहां पर इलाज होता दिख रहा है। ऐसे दृश्य देख कर के एक सामान्य आदमी इसके प्रति आकर्षित होता है । Challenges before Science Reporting

यहां पर आने वाले लोगों को देख कर के तो अभी यही प्रतीत होता है कि समाज का एक ऐसा वर्ग आ रहा है जो बहुत अधिक पढ़ा लिखा नहीं है। किंतु उनके बीच में ऐसे लोग भी दिख जाते हैं जो कि कहीं पर नौकरी आदि कर रहे होते हैं और वह अन्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक है प्रबुद्ध माने जा सकते हैं। इसी प्रकार से बड़ी संख्या में विदेश से भी लोग इन जगहों पर आते हैं। ऐसे व्यक्ति भी लोगों के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं।

वर्तमान में प्राइवेट अस्पतालों एवं बहुत से सरकारी अस्पतालों की जो वर्तमान में स्थिति है, उसे देखते हुए बहुत से लोगों को इन जगहों पर जाकर के तथाकथित इलाज कराना कहीं अधिक सुविधाजनक एवं आसान लगता है। वर्तमान चिकित्सालय में मनोवैज्ञानिक स्तर पर विभिन्न रोगों के मरीज के इलाज का शायद ही कोई तौर तरीका हो। सही प्रकार से इलाज की भी बहुत बड़ी समस्या होती है डॉक्टर और रोगी के बीच में संचार का बहुत बड़ा अंतराल होता है और यह अंतराल इस रूप में होता है कि रोगी इससे मनोवैज्ञानिक स्तर पर सुविधाजनक नहीं महसूस करते हैं। समय-समय पर विभिन्न अस्पतालों के संदर्भ में जो नकारात्मक समाचार निकलते हैं , वे भी समाज में एक गलत नकारात्मक संदेश देते हैं।

ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य विज्ञान रिपोर्टर के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है कि वह इन सभी नये स्थापित हो रहे परम्पराओं की वैज्ञानिकता की जाॅच करके सत्य को सामने ले आये जिससे कि यदि इसमें किसी भी प्रकार की कोई तथ्य है तो वह सामने आए और समाज में किसी भी प्रकार की भ्रामक स्थिति से लोगों को बचाया जा सके । Challenges before Science Reporting

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