Media effect is one important aspect of media study. This article discusses various studies and main finding in reference to the mainstream media.
कैसे होता है जनमाध्यमों का प्रभाव Media effect
समाज में विभिन्न प्रकार के जनमाध्यम जैसे रेडियो, टीवी, समाचारपत्र एवं नये माध्यमों की संख्या और उसके उपयोग करने वाले लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। विभिन्न एजेंसियों द्वारा जो रिपोर्ट दी जा रही है, उसके अनुसार आने वाले समय में जनमाध्यमों एवं उसके उपयोग करने वाले व्यक्तियों की संख्या में काफी अधिक वृद्धि होने की उम्मीद है। इस प्रकार से जनमाध्यमों की समाज में भूमिका के भी बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। जनमाध्यमों के उपयोग एवं प्रभाव को ले करके लोगों के मन में विभिन्न प्रकार की धारणाएं होती हैं। सामान्य तौर पर हुए लोग यही समझते हैं कि टीवी, समाचार पत्र जैसे जनमाध्यमों द्वारा कही गई बातों का लोगों पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता है और जनमाध्यम में दिखाए गए लोगों की एक सकारात्मक छवि बनती है। किंतु यह बात हमेशा सत्य नहीं होता है ।
जनमाध्यम के कार्य एवं प्रभाव को लेकर के आरंभ से ही विभिन्न प्रकार के अध्ययन किए जाते रहे हैं। समाजशास्त्रियों, राजनीतिक विश्लेषकों , मनोवैज्ञानिकों द्वारा इस संदर्भ में अपने-अपने ढंग से पूर्व में किए गए अध्ययनों से इसके बारे में विभिन्न प्रकार की बातें सामने आई हैं। इनके प्रभाव के संदर्भ में समय-समय पर जन माध्यमों में समाचार भी निकलते रहते हैं । एक सामान्य व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि जनमाध्यम समाज में कैसे प्रभाव डालते हैं, उसके बारे में वह सही प्रकार से समझ रखे जिससे कि उसके कार्य एवं भूमिका के बारे में उसे किसी प्रकार की कोई गलतफहमी या भ्रम न हो। आगे विभिन्न माध्यमों के प्रभाव के संदर्भ में ही अभी तक के अध्ययनों के विभिन्न निष्कर्षो को संक्षेप में चर्चा करने का प्रयास किया गया है।
जब हम जनमाध्यम की बात करते हैं, इसमें रेडियो, टीवी चैनल, समाचारपत्र ही मुख्य रूप से आते रहे हैं। इसके प्रभाव एवं भूमिका के संदर्भ में जो आरंभिक सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं , उनमें से बुलेट सिद्धांत नाम से एक सिद्धान्त काफी प्रसिद्ध रहा है। वर्ष 1930 के दौर में दिए गए इस सिद्धान्त में यह माना जाता रहा है कि जनमाध्यमों में जो कुछ भी बातें कही एवं दिखायी जाती हैं, उसे लोग सीधे स्वीकार कर लेते हैं या यह कहें कि मान लेते हैं और उस पर विश्वास करते हैं। हालांकि इस सिद्धांत के संदर्भ में किसी खास प्रकार के अध्ययन नहीं किए गए थे, लेकिन कुछ घटनाओं को ले करके जब यह सिद्धांत प्रस्तुत किया गया तो इसे काफी समय तक सत्य माना जाता रहा। बाद में यह ज्ञात हुआ कि यह बात पूरी तरह से सत्य नहीं है। Bullet Theory of Mass Communication जनसंचार का बुलेट सिद्धांत
जनमाध्यमों के प्रभाव Media effect के संदर्भ में एक सिद्धांत में यह भी कहा जाता है कि उसमें दिए जाने वाले संदेश के प्रति लोग अपने मन में एक प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर लेते हैं। लोगों पर जनमाध्यमों के विषय सामग्री का किसी प्रकार से कोई असर नहीं होता है। इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि लोगों द्वारा उसे बार बार देखने से उसके प्रति वे एक प्रकार का प्रतिरोध विकसित कर लेते है। किंतु यह बात यहीं तक नहीं समाप्त होती है। इस सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि यदि समाचार पत्र एवं टीवी चैनल आदि जैसे जनमाध्यमों की विश्वसनीयता समाप्त हो गई रहती है, तो उस स्थिति में उसमें जो बातें कही जाती है, लोग उस पर विश्वास नही करते हैं अथवा उससे विपरीत या भिन्न सोचते और समझते हैं। वहीं पर मीडिया का कैटालिस्ट या उत्प्रेरक प्रभाव के अनुसार मीडिया की उपस्थित में किसी घटना की गति धीमी अथवा तेज हो जाती है। यदि संबंधित लोग घटना को प्रचारित करना चाहते हैं तो मीडिया को देख कर के उस क्रियाकलाप को और तेज कर देते हैं और यदि वह किसी प्रकार के कानून के उल्लंघन की घटना है तो मीडिया को देखते ही लोग उसे करने से बचने का प्रयास करते हैं।
इसलिए जैसे-जैसे जनमाध्यमों के सांगठनिक ढांचे से लेकर के उसके क्रियाकलाप के बारे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल रही हैं, उसी के साथ लोग उसके द्वारा कही गई बातों में से सत्य बात पकड़ने की कोशिश करते हैं। अतः जनमाध्यमों की विश्वसनीयता काफी अधिक महत्वपूर्ण है। जब कोई जनमाध्यम किसी खास विचारधारा या पक्ष को ले करके बातें कहते है तो फिर उसके प्रति लोग एक सीमा तक ही विश्वास करते हैं।
जन माध्यमों के प्रभाव Media effect के संदर्भ में एक सिद्धांत स्टेलग्माइट सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। इसके अंतर्गत यह कहा जाता है कि माध्यमों में प्रस्तुत विषय सामग्री का लोगों पर धीरे-धीरे प्रभाव पड़ता है। बार बार प्रस्तुत किसी संदेश का उनके मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता रहता है और एक समय पश्चात यह अपनी पूरी मजबूती के साथ उभर कर आता है। इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि जब कोई बात विचार, बात या विज्ञापन को व्यक्ति बार-बार देखता सुनता है ,तो धीरे-धीरे उसे ही वह जानने मानने और विश्वास करने लगता है। विज्ञापन से ले करके मीडिया में दिखाये जाने वाले नये प्रकार की भाषा, मूल्य, परिवेष को बार बार प्रस्तुत करने पर एक समय पश्चात वह लोगों के मन पर अपना जड़ जमा लेता है। इस सन्दर्भ जार्ज गर्बनर का कल्टीवेशन सिद्धान्त सबसे महत्वपूर्ण सिद्धान्त है।
Cultivation Theory माध्यम का कल्टीवेशन सिद्धांत
जनमाध्यमों को सामान्य तौर पर सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक बदलाव का एक बहुत ही महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। इसके द्वारा नए सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों को स्थापित किया जाता है। इससे नए विचारों को प्रचारित प्रसारित किया जाता है। किंतु जनमाध्यम के प्रभाव के संदर्भ में एक विचार यह भी है कि वह वर्तमान स्थित को बनाए रखने में सहयोग देती है। अर्थात यह वर्तमान मूल्य सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व्यवस्था और अन्य जो कुछ भी संरचनाएं हैं, उसमें वह बदलाव नहीं करती है, वरन् उसे मजबूती के साथ बनाए रखने में सहयोग करती है। यह वर्तमान रीति रिवाज परंपरा को बनाए रखती है । इसका कारण यह है कि जनमाध्यमों में ऐसे लोगों का भागीदारी होती है जो कि मीडिया के ऐसे बातों को ज्यादा प्रसारित करते हैं जो समाज की संरचना को उसी रूप में बनाए रखने में मदद करता है। इसके अपने अच्छे बुरे पहलू होते हैं ।
सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि जनमाध्यमों में कही गई बातों का सभी पर एक समान रूप से एक ही तरीके से प्रभाव पड़ता है। किंतु इंडिविजुअल डिफरेंस थिअरी या व्यक्तिगत् भिन्नता के सिद्धान्त के अनुसार जनमाध्यमों के एक ही प्रकार के संदेश ,कार्यक्रम का भिन्न-भिन्न व्यक्तियों पर भिन्न-भिन्न तरीके से प्रभाव पड़ता है और यह विविध रूपों में हो सकता है । व्यक्ति की उम्र, शिक्षा, वर्ग, पृष्ठभूमि आदि की विविधता के अनुसार यह प्रभाव भिन्न भिन्न रूपों एवं स्तर में होता है। यही कारण है कि कई बार जनमाध्यमों में दिए गए एक ही संदेश से सामान्य व्यक्ति सकारात्मक संदेश लेते हैं, वहीं दूसरा व्यक्ति नकारात्मक ढंग से या अपराध करने का संदेश लेता हैं।
https://www.researchgate.net/publication/284789927_Individual_differences_in_media_effects
कोई भी जनमाध्यम सभी प्रकार के ऑडियंस के लिए एक कार्यक्रम नहीं बना सकता है। उसको अपने कार्यक्रमों के लिए एक निश्चित टारगेट ऑडियंस निर्धारित करना पड़ता है। दूसरी तरफ, दर्शक या पाठक की तरफ से भी अपने कार्यक्रमों को देखने, पढ़ने के लिए विभिन्न प्रकार के विकल्प रहते हैं। इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि जो माध्यम उनको टारगेट करके कार्यक्रम दिखा रहे हैं, वह उसे अवश्य ही देखें । वह उसकी जगह पर कोई और भी कार्यक्रम देख सुन सकते हैं। इसलिए यह मानना सही नही है कि किसी कार्यक्रम का सभी लोगों पर एक साथ एक ही तरीके से प्रभाव पड़ेगा। कार्यक्रमों के दिखाने और उसके चुनने का जनमाध्यम और ऑडियंस दोनों तरफ से चयन किया जाता है।
जनमाध्यम के संदर्भ में एक विचार यह भी है कि लोग इस पर या इसके माध्यम से अपनी अपनी बातें कहते हैं । किंतु नियोला न्यूमैन द्वारा दिए गए स्पायरल आफ साइलेंस थियरी के अनुसार वे विचार जो कि अल्पमत में होते हैं या जिसको बहुत कम लोग रखते हैं, ऐसे विचारों को वे स्वयं व्यक्त करने से डरते हैं, क्योंकि इससे उनका नुकसान होने और समाज में लोगों से अलग-थलग पड़ जाने का भय रहता हैं।
जनमाध्यमों के प्रभाव Media effect के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इसमें जो कुछ भी दिखाया जाता है ,उसे लोग सीधे मानने या स्वीकार के बजाय उस के संदर्भ में फिर दूसरे लोगों से पूछताछ करके जानकारी प्राप्त करते हैं । संदेश के दो चरण और बहु चरण प्रवाह के अंतर्गत यह माना जाता है कि जब कोई संदेश किसी जनमाध्यम से प्रस्तुत किया जाता है तो वह पहले कुछ लोगों तक जाता है। फिर वे लोग उस संदेश में अपने तरीके से उसमें अन्य बातों डालते हुए लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं । इसलिए कई बार संदेश में जो बात कही जाती है, उससे अलग हट करके आम लोगों तक संदेश पहुंचता है। जब कम संख्या में जनमाध्यम होते थे तो यह सिद्धान्त कही अधिक प्रभावी था। किन्तु आज भी इस सिद्धांत की अपने ढंग से सार्थकता है। Two-step flow of communication संचार का दो-चरण प्रवाह का सिद्धांत
मीडिया प्रभाव Media effect के सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति मीडिया को काफी अधिक देखते हैं, उन्हे इस दुनिया को मीडिया के नजर से देखने की आदत हो जाती है। वे जन माध्यमों में जो कुछ जिस रूप में देखते हैं, उसी ढंग से उसे मानते हैं । इस प्रकार से वे वास्तविकता से परे हट करके समाज को देखने की आदत हो जाती है, क्योंकि माध्यम एक सीमा तक ही समाज की वास्तविकता को दिखा पाते हैं।
मीडिया का समाज पर प्रभाव के सन्दर्भ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इसके कार्य एवं प्रभाव के निर्धारण में अन्य विविध प्रकार के कारकों की भी स्थिति के अनुसार कम अधिक भूमिका होती है। यह प्रत्येक व्यक्ति के सन्दर्भ में भिन्न भिन्न होता है। इसलिए मीडिया के प्रभाव एवं कार्य को बिल्कुल अकेले निरपेक्ष हो करके नही देखा जा सकता है। मीडिया का समाज के प्रभाव देखने में में अन्य बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
मीडिया प्रभाव Media effect के सन्दर्भ में अन्य कई अन्य सिद्धान्त भी दिये गये हैं जो कि भिन्न भिन्न मीडिया, कार्यक्रम एवं डिमोग्राफी के सन्दर्भ में किये गये हैं। न्यू मीडिया ने पारंपरिक रूप वाले जनमाध्यम रेडियो, टीवी, फिल्म के स्वरूप कार्य एवं तौर तरीके को काफी बदल दिया है । किंतु इसके बारे में विभिन्न प्रकार के अध्ययन किए जा रहे हैं। उसकी बातें भी सामने आ रही है। फिलहाल उसके सन्दर्भ में यहाॅं पर चर्चा नही की गयी है।
इस प्रकार से हम यह देखते हैं कि जनमाध्यमों का प्रभाव के संदर्भ में इतने तरीके के विचार है कि किसी एक संदेश को लेकर के एक ही प्रकार का विचार रखना किसी भी तरीके से सही नहीं माना जा सकता है । इसको हर ढंग से देख कर के समझने की जरूरत होती है। भिन्न भिन्न प्रकार के मीडिया के प्रभाव को जानने के सन्दर्भ में व्यक्ति की अपनी समझ, पृष्ठभूमि एवं सजगता की भूमिका सबसे अधिक होती है। यह आवश्यक है कि हम मीडिया में जो कुछ भी दिखाया जा रहा हो उसके प्रति ही प्रकार से सजग रहे और अपने समझदारी का उपयोग करे और आवश्यकतानुसार उसका विश्लेषण एवं जाॅच करे। Media effect