Aristotle model of communication is considered earliest model of communication. This model is very useful in interpersonal communication. अरस्तु का संचार मॉडल । Aristotle model of communication
Dr. Arvind Kumar Singh
1- छात्रों! नमस्कार ! हम सभी लोग आपस में संवाद करते हैं एक दूसरे से बातचीत करते हैं । संवाद के इस तरीके के संदर्भ में विभिन्न प्रकार के मॉडल भी दिए गए हैं । इसमें से कुछ मॉडल तो काफी पहले दिए गए हैं। इसके द्वारा संचार की प्रक्रिया को स्पष्ट करने का प्रयास किया जाता है।
2 इन्हीं में से आज हम एक माडल की चर्चा करने जा रहे हैं जिसे कि हम अरस्तु का मॉडल करते हैं अथवा अरिस्टाटिल का माॅडल कहा जाता है। इसे 300 साल ईसा पहले ग्रीक दार्शनिक अरिस्टाटिल ने दिया था। हम कह सकते हैं कि यह बहुत ही पहले दिया गया संचार मॉडल है। यह एक बहुत ही सरल प्रकार का मॉडल है और बहुत ही सीधे साधे तरीके से संचार की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है । यह मॉडल आज भी उपयोग में लाया जाता है। हालांकि इस मॉडल की भी कई प्रकार की कमियां हैं । उसके बावजूद इसका अपना एक अलग महत्व है। इन सब बातों की चर्चा हम आज के इस व्याख्यान में करेंगे । तो चलिए हम अरस्तु के मॉडल के बारे में बात आरंभ करते हैं।
3 अरस्तू ने जो संचार का मॉडल दिया है, वह वक्ता केंद्रित संचार का प्रारूप है। अर्थात इस मॉडल में संदेश को देने वाले व्यक्ति को काफी महत्व दिया गया है। इस मॉडल में पूरी संचार की प्रक्रिया को पांच भागों में या पांच तत्वों के रूप में वर्णित कर सकते हैं और इसमें पहला तत्व वक्ता है। दूसरा तत्व उसके द्वारा दिए जाने वाला वक्तव्य है। इसके अतिरिक्त तीसरा तत्व वह अवसर भी शामिल है जिस अवसर पर यह संचार किया जाता है। इस मॉडल में जो चौथा तत्व है वह संचार को ग्रहण करने वाले व्यक्ति हैं, जिन्हें हम ऑडियंस या श्रोता के रूप में कह सकते हैं और इसका पांचवा एवं अन्तिम महत्वपूर्ण तत्व प्रभाव है जो कि संपूर्ण संचार प्रक्रिया के आखिर में उभर करके सामने आती है । इस प्रकार से इस मॉडल में वक्ता, श्रोता, सन्देष, अवसर और प्रभाव कुल पांच तत्व माने गए हैं।
Helical Model
4 इस माडल में सबसे पहला तत्व स्पीकर या वक्ता है, उसी को सबसे महत्वपूर्ण तत्व के रूप में भी माना जाता है। वह सभी प्रकार के संचार प्रक्रिया का मुख्य केंद्र बिंदु होता है। उसके द्वारा कही गई बातों पर ही सबका ध्यान केंद्रित होता है। अपने वक्तव्य के माध्यम से वह श्रोतातों को अपनी तरफ ध्यान आकृष्ट किए रहता है। इसके लिए वह अपने कंटेंट या विषय प्रस्तुत किये जाने वाली सामग्री को इस रूप में तैयार करता है, जिससे कि लोग उससे जुड़े रहें और इस संदर्भ में उसके जो कुछ भी प्रयास किए जा सकते हैं, वह प्रयास ही उस अवसर विशेष के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और उनके लिए भी महत्वपूर्ण होते हैं । तो इस तरह से हम देखते हैं कि अरस्तु ने अपने संचार प्रक्रिया के मॉडल में सबसे पहले वक्ता अर्थात् वह व्यक्ति जो कि संचार करता है, सन्देष को देता है उसको महत्वपूर्ण मानते हुए उसका जिक्र किया है।
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5 इस मॉडल का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व वह संदेश या वह वक्तव्य है जो कि वक्ता श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करता है। यह संदेश कैसा है, किस रूप में है, कैसे प्रस्तुत किया गया है, यह सारी बातें ही संचार के प्रभाव का भी निर्धारण करती हैं और वह श्रोताओं को अपने साथ कितना जोड़ेगा, उसका भी निर्धारण करती है। सफल संचार प्रक्रिया होने के लिए वक्ता द्वारा अपने वक्तव्य या सन्देष को सही तरीके से देना अति आवश्यक है। उसे इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि क्या एवं कैसे कहना है।
6 संचार में जो कुछ भी बातें कहीं जाती हैं वह किसी न किसी विषय संदर्भ और अवसर पर कही जाती हैं । तो इस दृष्टि से संचार मॉडल में तीसरे नंबर पर जो तत्व दिखाया गया है या प्रस्तुत किया गया है , वह अवश्य ही वह अवसर एवं परिवेश विशेष संदर्भ को भी इसमें हम शामिल कर सकते हैं । इसको ध्यान में रख करके जो वक्ता होता है, वह अपने वक्तव्य को या अपनी बातों को कहता है । वह उसे कहने से पहले यथासंभव उसकी तैयारी करता है। यह कह सकते हैं कि जो कुछ भी वक्तव्य वक्ता द्वारा दिया जा रहा है, वह अवसर को ध्यान में रखकर के तैयार किया जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए यदि कोई राजनीतिक व्यक्ति किसी प्रकार का भाषण कर रहा है, तो जहां कहीं भी वह भाषण कर रहा है और जिनके बीच में बोल रहा है, वह उसके संपूर्ण परिवेष को ध्यान में रख कर के ही बातों को कहता है और उसी को अनुसार वह क्या बातें करनी है, किससे कितनी करनी है, उसका वह निर्णय करता है।
7 अरस्तु के संचार मॉडलAristotle model का जो चौथा तत्व है, वह वह ऑडियंस है या वे व्यक्ति होते हैं जिनके समक्ष कोई वक्तव्य वक्ता द्वारा दिया जाता है । अरस्तु ने अपने संचार मॉडल पूर्ण रूप में प्रस्तुत किया है। इसका आशय यही है कि वक्ता जो कुछ भी बात कहता है वह सीधे श्रोताओं के पास जाता है। इसमें किसी प्रकार का कोई संदेश श्रोताओं की तरफ से फिर वक्ता को नहीं दिया जाता है। इसलिए इसे एक रेखीय मॉडल के रूप में देखते हैं। इसमें श्रोताओं द्वारा किसी प्रकार का कोई फीडबैक नहीं दिया जाता है।
8 और यह माना जाता है कि संचार के मैं जो कुछ भी बातें कही गई हैं, वह श्रोताओं पर अपना असर करती हैं। यह असर सकारात्मक या नकारात्मक दोनों रूप में हो सकता है। संचार के इस मॉडल में सबसे आखिरी वाला तत्व प्रभाव ही है। इस प्रकार से हम यह देखते हैं कि अरस्तू ने संचार का एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया जो कि हमारे व्यावहारिक जीवन में सामान्य तरीके से जो कुछ बातें करते हैं, उसको वह एक प्रारूप रूप में प्रस्तुत किया और उसने यह दिखाया कि इससे बातचीत की प्रक्रिया कैसे होती है, इसमें क्या-क्या तत्व शामिल हैं, जिनसे मिलकर के संपूर्ण संचार की प्रक्रिया पूरी होती है।
9 Aristotle model में कई अन्य तत्वों को भी प्रस्तुत किया गया है। इसमें एक तत्व एथास है जो कि वक्ता के विश्वसनीयता से जुड़कर के है । उसके शब्द और बातें कितनी विश्वसनीय है, वह संचार के प्रभाव को भी निर्धारित करता है। इसी प्रकार से उसने संचार में विभिन्न प्रकार के फीलिंग या अनुभूति है या जो मिला भाव जुड़ा है, उसको भी बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व माना और फिर अरस्तु ने किसी भी प्रकार के संचार प्रक्रिया में किस ढंग से क्या लाभ दिया जा रहा है, उसको भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व के रूप में लिया ।
10 Aristotle’s model of communication व्यावहारिक जीवन में तमाम ऐसे उदाहरण दिए जा सकते हैं, जहाॅं पर कि Aristotle model अपने तरीके से लागू होता है । उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति राजनीतिक रैली कर रहा होता है, उस समय वह लोगों के समक्ष उपस्थित होकर के अपनी बातें कहता है। वह जो कुछ भी बाते कहता है वह स्वयं संचार के अनुसार पहला तत्व स्पीकर के रूप में खड़ा होता है और अपनी बात लोगों के समक्ष प्रस्तुत करता है , वह उसका संदेश होता है और उसे हुआ उस अवसर विशेष को ध्यान में रखकर के लोगों के समक्ष प्रस्तुत करता है वहां पर उपस्थित सभी लोग राजनीतिक भाषण को सुनते हैं वे सब श्रोता के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं और आखिर में उन पर उसका प्रभाव पड़ता है।
11 इस मॉडल की यदि हम समीक्षा करे तो तो पाएंगे कि यह कई तरीके से उपयोगी मॉडल भी है और यह पब्लिक स्पीच के संदर्भ में तो विशेषतौर पर इस्तेमाल किया जाता है ।यह संचार के एक बहुत ही प्रभावी तरीके के रूप में भी देखा जाता है। इस मॉडल का उपयोग किसी भी प्रकार के संचार प्रक्रिया में ऑडियो को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए।
12 किंतु Aristotle model की काफी आलोचना भी की गई है । इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह कि से एक रेखीय मॉडल के रूप में माना गया है जो कि आज के दौर में सत्य प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि यह मानना कि कोई भी संदेश वक्ता से शुरू होकर के श्रोता तक जाकर समाप्त हो जाता है, यह अपने आप में सत्य नहीं प्रतीत होता है । इस मॉडल में वक्ता पर इतना ध्यान दिया गया है कि और किसी अन्य पहलू की कोई विशेष चर्चा ही नहीं की जाती है । यह मॉडल पब्लिक स्पीकिंग के संदर्भ में तो कुछ हद तक सही साबित है, लेकिन और संदर्भों में इसका कोई उपयोग नहीं है । इसमें फीडबैक की कोई कल्पना ही नहीं की गई है ।
13.कुल मिलाकर के अरस्तु का माडल Aristotle model आज भी पब्लिक स्पीकिंग के संदर्भ में टारगेट ऑडियंस को अपनी तरफ आकर्षित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह बताता है कि टारगेट ऑडियंस वक्ता अवश्य ध्यान में रखें। जब भी वह किसी भी प्रकार का कोई पब्लिक कम्युनिकेशन करने जा रहा है, वह अपने स्पीच को तैयार रखें । उसकी यह जिम्मेदारी है कि अपने वक्तव्य से उन्हें राजी करें और उसे प्रभावित करें ।
14 इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि अरस्तु का मॉडल एक पहले दिया गया यह ऐसा मॉडल है जो कि आज के संदर्भ में अपने तरीके से संचार प्रक्रिया को बहुत ही सरल ढंग से स्पष्ट करता है।