April 2, 2025

छोड़ नहीं पाते हैं, चंद कागज के टुकड़ों का साथ।

इस तरह से मिल गये हैं, इनसे जीवन भर का हाथ।।

ये बन गए पहचान अपनी, जिंदगी के सब कर्म का।

हैं देते प्रमाण ये, जीवन-यात्रा, निभाए गए धर्म का ।।

जब भी कभी दिख जाते हैं ये, अतीत में ले जाते हैं ।

इनके हर एक शब्द, बीते दिनों की याद दिलाते हैं।।

हैं बने गवाह ऐसे, मेरी बातों से भी अधिक गंभीर हैं।

इन पर लिखे हरेक शब्द, बने पत्थर की लकीर हैं।।

लाख चाहूं मैं, कोई भी क्या,इन्हें  मिटा सकता नहीं।

जो कह दी गई बात, उनको अब बदल सकता नहीं।।

इनसे ही बना हुआ है, अपने जीवन का एक परिवेश।

ये नहीं, तो होता आभास, जीवन में कुछ नहीं शेष ।।

जीवन का, व्यक्तित्व का बने हैं,  ये सभी ऐसे श्रृंगार ।

है बनी पहचान अपनी, जीवन का ये हैं आधार।।

इन्हें ही देख कर , लोग बनाते हैं, मेरे बारे में विचार ।

ये सिर्फ कागज़ नहीं, मेरे हैं दुनिया और संसार।

जब कभी कुछ हानि होती , मन में होता है विषाद।

इन्हें संजो कर रखता हूं मैं, इनसे करता हूं संवाद।।

छोड़ नहीं पाते हैं, चंद कागज के टुकड़ों का साथ।

इस तरह से मिल गया है, इनसे जीवन भर का हाथ।।

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डॉ अरविंद कुमार सिंह